अगर लोकसभा में चेयर्स के साथ हरा रंग नजर आता है राज्यसभा में लाल रंग. इसकी वजह दोनों सदनों में अलग अळग रंग के बिछे कारपेट हैं. नई संसद बिल्डिंग में भी राज्यसभा और लोकसभा में अलग अलग रंगों की कालीन तो बिछी हैं लेकिन साथ ही उनका इंटीरियर ऐसा है कि इन सदनों के अलग अलग रंगों को खासतौर पर उभारता है. ये रंग भी कमोवेश हरे और लाल के ही करीब हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है
ब्रिटिश राज के समय में जब इस भवन के विचार का सूत्रपात हुआ था, तब इसका नाम काउंसिल हाउस सुझाया गया था. इसके भीतर तीन प्रमुख भवनों या कक्षों का विचार किया गया था.पहला राज्यों की परिषद जिसे बाद में राज्यसभा कहा गया, दूसरा वैधानिक सभा जिसे बाद में लोकसभा के तौर पर पहचाना गया और तीसरा था राजकुमारों का सदन, जो अब संसद भवन के पुस्तकालय का रूप ले चुका है. यह भी दिलचस्प है कि लाखों किताबों से भरी यह लाइब्रेरी देश की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी
पुराने संसद की लोकसभा की तस्वीरों को देखने पर हरा रंग उभार लेता हुआ लगता है, क्योंकि इसमें हरे रगं की कालीन बिछी थी. लोकसभा भारत की जनता का सीधे प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए इन प्रतिनिधियों के ज़मीन से जुड़े होने के प्रतीक के तौर पर हरे रंग का इस्तेमाल हुआ है. घास या बड़े स्तर पर कृषि का प्रतीक हरे रंग को माना जाता है
राज्यसभा संसद का उच्च सदन कहलाता है. इसमें प्रतिनिधि सीधे चुनाव के ज़रिये नहीं बल्कि राज्यों के जन प्रतिनिधियों के आंकड़ों के हिसाब से पहुंचते हैं. पुरानी संसद के राज्य सभा में रेड कारपेट बिछाने के पीछे दो विचार रहे. एक लाल रंग राजसी गौरव का प्रतीक रहा है और दूसरा लाल रंग को स्वाधीनता संग्राम में शहीदों के बलिदान का प्रतीक भी समझा गया. इस विचार के चलते राज्य सभा में रेड कारपेट बिछाया गया.