रुपये में अवमूल्यन (Depreciation In Rupee) से विदेशों में पढ़ाई (Foreign Education) की लागत भी बढ़ गई है. पहले जहां शिक्षा सलाहकार बच्चों के अभिभावकों को 2.3 फीसदी वार्षिक वृद्धि के लिए तैयार रहने को कहते थे लेकिन अब रुपये में हालिया गिरावट के बाद, वे उन्हें 5.7 फीसदी वार्षिक वृद्धि के लिए तैयार रहने की सलाह दे रहे हैं.
कुछ माता-पिता ने तो अपने बच्चों को विदेश भेजने का अपना प्लान ही चेंज कर दिया है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार बेंगलुरु स्थित स्पार्क करियर मेंटर्स के सह-संस्थापक और निदेशक नीरज खन्ना का कहना है कि जिन परिवारों के साथ हम बच्चों को विदेश भेजने की योजना बना रहे थे, उनमें से लगभग 5 प्रतिशत ने अपने बच्चे को भारत के ही कॉलेज में भेजने का फैसला किया है.
बढ़ गया है छात्रों का खर्च
जो विद्यार्थी पहले ही विदेश में पढ़ाई करने जा चुके हैं, उनका खर्च भी रुपये में आई गिरावट से बढ़ गया है. उन्हें अपनी पढ़ाई और रहने का खर्च निकालने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत पड़ रही है क्योंकि एक डॉलर की कीमत अब 80 डॉलर के करीब हो चुकी है. एक जनवरी को एक डॉलर की कीमत 74.51 भारतीय रुपये थी. वहीं 19 जुलाई को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया इतिहास में पहली बार 80 रुपये के पार पहुंच गया और 80.05 रुपये पर ट्रेड करने लगा. इस तरह रुपये में साल 2022 में अब तक करीब 7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. रुपये में अवमूल्यन से बढ़े विदेशी पढ़ाई के खर्च को कुछ टिप्स की मदद से अभिभावक कम कर सकते हैं.
स्कॉलरशिप
स्कॉलरशिप विदेश में पढ़ाई के खर्च को काफी कर देती है. बिजनेस टूडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, एफपॉवर फाइनेंसिंग के जनरल मैनेजर और वाइस प्रेसिडेंट अश्विनी कुमार का कहना है कि जिन विद्यार्थियों के ग्रेड बहुत मजबूत हैं, उनको विदेश में ट्यूशन स्कॉलरशिप मिलने के काफी चांस होते हैं. स्कॉलरशिप पढ़ाई का खर्च करने का एक अच्छा साधन है.
टॉप-अप लोन
विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों को अगर महंगाई बढ़ने और रुपये की कीमत में गिरावट से अब रहने और पढ़ाई के लिए ज्यादा पैसों की अचानक जरूरत पड़ गई है तो उन्हें टॉप-अप लोन के लिए अप्लाई कर देना चाहिए. इससे उन्हें आगे वित्तीय संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा.