कोरोना (Corona) की त्रासदी ने हजारों लोगों को हमसे छीन लिया. जो लोग इस दुनिया से चले गए, उनका परिवार भारी सदमे से गुजर रहा है. सरकार की ओर से उन्हें 50 हजार मुआवजे का ऐलान किया गया है लेकिन कुछ बेइमान लोग ऐसे भी हैं जो इस तरह के मामले में भी फर्जी डेथ सर्टिफिकेट बनाकर मुआवजे की राशि हड़प रहे हैं. इससे जो लोग वास्तविक हकदार हैं, उनका हक मारा जा रहा है. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सख्त नराजगी जताई है और ऐसे लोगों के खिलाफ जांच एजेंसी के गठन का संकेत दिया है.
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए आंकड़ों में बताया कि अब तक अब तक कोविड से हुए मौत के बाद उनके परिवारों में 6 लाख लोगों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा दिया गया है. कोविड डेथ से संबंधित अब तक 8 लाख दावे किए गए हैं.यह आंकड़ा राज्यों द्वारा कोविड से हुए मौत के आंकड़ें से कहीं अधिक है
इस धोखाधड़ी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
मामले की सुनाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोरोना से होने वाली मौत के मामले में आश्रित परिजनों को मुआवजा देने में दिक्कत आ रही है क्योंकि कई लोग फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर मुआवजे का दावा कर रहा है. तुषार मेहता ने कहा कि डॉक्टर अन्य कारणों से हुई मौत को भी कोरोना से हुई मौत बताते हुए नकली प्रमाणपत्र दे रहे हैं. इस बात पर कड़ी आपत्ति जताते हुए जस्टिस एम आर शाह (Justices M R Shah) और जस्टिस बी वी नागारथना (B V Nagarathna) ने कहा कि डॉक्टरों द्वारा फेक सर्टिफिकेट दिए जाने से हम चिंतित हैं. यह बहुत ही गंभीर मामला है.
हमने यह विश्वास करते हुए एक आदेश पारित किया कि डॉक्टर वास्तविक प्रमाण पत्र जारी करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होना गंभीर है. इस मामले को कैसे रोका जाए, इस पर हम कुछ सुझाव चाहते हैं. हमें किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच का आदेश देना होगा. हम डॉक्टरों की इस धोखाधड़ी के खिलाफ सख्त हैं. इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
पहले कहा था तकनीकी आधार पर दावे खारिज न करें
गौरतलब है कि कोरोना से हुई मौत के बाद उनके परिजनों को मुआवजे देने का मामला खुद सुप्रीम कोर्ट देख रहा है. हर कुछ सुप्रीम कोर्ट की ही निगरानी में चल रहा है. ऐसे में कुछ भी करने से पहले सुप्रीम कोर्ट की अनुमति जरूरी है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तकनीकी आधार पर अगर किसी के पास कोरोना से मौत का दस्तावेज नहीं है तो उसे मुआवजा देने से मना नहीं कर सकते. अब इस मामले में 14 मार्च को सुनवाई होगी. इससे पहलेकोर्ट ने राज्यों से कहा था कि वह तकनीकी आधारों पर मुआवजे के दावों को खारिज न करें. कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए थे कि आवेदन मिलने के 10 दिन के भीतर मुआवजा देने की कोशिश करें. जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागररत्ना की बेंच ने कहा था, ‘मृतकों से जुड़े अधिकारिक आंकड़े सच नहीं हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि (कोविड पीड़ितों के परिवारों की ओर से) फर्जी दावे किए जा रहे हैं.