कहते हैं जहां चाह है, वहां राह है. सपने अगर देखो तो उसे पूरा करने के लिए जियो. कुछ ऐसी ही कहानी है छत्तीसगढ़ के महासमुंद की गृहणी कौशल्या बंसल की, जिन्होंने कड़ी मेहनत से अपने बच्चों को पढ़ाया. खुद के सपनों को दबाकर बच्चों को एक नये भविष्य का सपना दिखाया. फिर आखिरकार बच्चों ने भी अपने माता-पिता के सपनों को साकार कर दिखाया. यूपीएससी और सीजी पीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल कर बच्चे अब आईआरएस, आईपीएस और डिप्टी कलेक्टर जैसे पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं. शुरुआती दौर में 8वीं तक की शिक्षा लेने वाली कौशल्या अब खुद आगे की पढ़ाई कर रही हैं.
यह कहानी है महासमुंद के रहने वाली कौशल्या बंसल की. महासमुंद जिले के बसना कि रहने वाली कौशल्या बंसल की शादी महज 17 साल की उम्र में 1974 में हो गई थी. तब वह केवल आठवीं तक पढ़ाई कर पाई थी. क्योंकि 5 भाई और 5 बहनों में बड़ी बहन की शादी होने के बाद, घर में काम करने के लिए केवल कौशल्या ही बची थी. जिन पर छोटे भाई बहनों को संभालने के साथ घर के काम का भी बोझ था. इस बीच उसके मन में पढ़ाई को लेकर हमेशा एक लगन रही, लेकिन शादी के बाद वह सपने भी सपने रह गए. लेकिन उन सपनों को उन्होंने अपने बच्चों के बेहतर भविष्य में देखा.
बच्चों की पढ़ाई में समझौता नहीं
जब वह खुद मां बनी तो उसने ठान लिया था कि, अपने बच्चों की पढ़ाई से वे किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगी. इसमें उनके पति ने भी उसका पूरा सपोर्ट किया. भले ही उन्होंने आठवीं तक की पढ़ाई की लेकिन अपने बच्चों को खूब पढ़ाया. कौशल्या बंसल के चार बच्चे हैं. उन्हें जब लगा कि बच्चों को वह अंग्रेजी उन्हें नहीं पढ़ा पा रही, तो उन्होंने बच्चों को हिंदी में पढ़ाया. उन्होंने बच्चों के भविष्य में ही अपना भविष्य समझा. कौशल्या बंसल बताती है कि, उनके 3 बेटे और एक बेटी है. उनकी शादी के 3 साल बाद उनका बड़ा बेटा हुआ. 5 साल बाद दूसरा, 7 साल में तीसरा बेटा आया. छोटे बेटे के आने के 9 साल बाद बिटिया ने घर में जन्म लिया. सभी ने कड़ी मेहनत की, माता-पिता के सपनों को अपना समझा.
तीन बच्चे अधिकारी एक बिजनेसमैन
कौशल्या बताती हैं कि उनका बड़ा बेटा श्रवण बंसल जीएसटी रायपुर में कमिश्नर के पद पर हैं. मंझला बेटा मनीष बंसल पिता का बिजनेस संभालते एक सफल व्यापारी हैं. छोटा बेटा त्रिलोक बंसल आईपीएस हैं, जो गौरेला पेंड्रा मरवाही में एसपी के पद पर हैं. वही सबसे छोटी बेटी शीतल बंसल, डिप्टी कलेक्टर हैं, जो वर्तमान में गरियाबंद छुरा एसडीएम के पद पर हैं. बच्चों के सफल होने के बाद अब मां खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं. वह कहती हैं कि बहुत कम मां-बाप होते हैं, जिनके ऐसे बच्चे होते है, जो अपने माता-पिता के सपनों को पूरा कर दिखाते हैं. जब सभी बच्चे सेटेल हो गए तो 60 साल की उम्र में उन्होंने खुद कक्षा दसवीं की ओपन परीक्षा दी और पास भी हुई.