अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते वर्चस्व ने रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के माथे पर भी बल डाल दिया है. गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा अमेरिकी फौजों (US Army) के अफगानिस्तान से वापस बुलाने के बाद ज्यादातर हिस्सों में तालिबान (Taliban) की पकड़ बढ़ती जा रही है. इन देशों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि तालिबान के उभार से आतंकवाद का खतरा बढ़ सकता है. महाशक्तियों की चिंताएं किस तरह से बढ़ रही हैं, यह उनके तरफ से जारी बयानों और तैयारियों से साफ पता लग रहा है. एक तरफ रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन तालिबान से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि तालिबान मध्य एशियाई सीमाओं का सम्मान करेगा जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करती थीं. वहीं चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अफगानिस्तान पर बातचीत के लिए अगले हफ्ते मध्य एशिया का दौरा करने की योजना बना रखी है.
गौरतलब है कि वांग यी ने पिछले हफ्ते चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान में सबसे बड़ी चुनौती स्थायित्व बनाना और युद्ध रोकना था. सिर्फ रूस और चीन ही नहीं पाकिस्तान भी तालिबानी हलचलों से डरा हुआ महसूस कर रहा है. पाकिस्तान से स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी सीमाओं को शरणार्थियों के लिए नहीं खोलेगा. उधर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने अफगानिस्तान से सेना हटाने के अमेरिका के फैसले को जल्दबाजी में उठाया कदम बताया है. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने प्रतिबद्धता जताई थी कि वह अफगानिस्तान को फिर से आतंकवाद का गढ़ नहीं बनने देंगे. अमेरिका को अपनी इस प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए. बीजिंग में एक ब्रीफिंग के दौरान वांग वेनबिन ने आगे कहा कि अमेरिका ने अपनी सेना को हटाने में जल्दबाजी दिखाई है. इसके चलते अफगानिस्तान के लोगों की जिंदगी मुश्किल में पड़ गई है.
इस बीच कुछ अन्य विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में तालिबान के उभार पर चिंता जताई है. मिडिल ईस्ट स्टडीज इंस्टीट्यूट आफ शंघाई इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर फैन होंग्डा के मुताबिक अफगानिस्तान में अशांति अन्य देशों के लिए भी मुश्किल का सबब बनेगी. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि चीन अमेरिका जैसी भूमिका निभाने का इच्छुक तो नहीं होगा. लेकिन क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए उसे कुछ न कुछ तो करना होगा.
भारत में अफगानिस्तान के दूत फरीद ममूंदजे के मुताबिक अफगानिस्तान में तालिबान का उभार चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि इसके 20 आतंकी संगठनों से करीबी लिंक हैं. यह सभी आंतकी संगठन रूस से लेकर भारत तक में संचालित होते हैं. उनके मुताबिक इन संगठनों की गतिविधियां जमीन पर दिखाई देती हैं और यह सभी इस क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान जिसने की 90 के दशक में तालिबान को सिर उठाने में मदद की, अब तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान टीटीपी के अस्तित्व को लेकर चिंतित है. टीटीपी पाकिस्तान में करीब 70 हजार लोगों की मौत का जिम्मेदार रहा है. हाल ही में पाकिस्तान मिलिट्री आपरेशन और अमेरिकी ड्रोन्स के हमले में टीटीपी को दबाया गया है. लेकिन तालिबान के उभार के बाद टीटीपी भी खुद के लिए मौके तलाश सकता है और पाकिस्तान में चीनी प्रोजेक्ट्स को तबाह कर इस्लामाबाद की पॉलिसी को प्रभावित कर सकता है.