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Petrol Diesel Price Hike: तेल से कितना कमाती हैं केंद्र और राज्य की सरकारें, यहां जानिए सब कुछ

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विपक्ष केंद्र सरकार के ऊपर पिछले 6 सालों के दौरान एक्साइज ड्यूटी और टैक्स के ज़रिए 21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाने का आरोप लगाता है. सरकार की दलीलों के मुताबिक सरकार को पिछले 6 सालों के दौरान अगर 21 लाख करोड़ मिला भी है तो उस पैसे का इस्तेमाल देश के लोगों के हित में किया गया है, विकास योजनाओं में किया गया है.

विपक्ष लगातार पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश में लगा हुआ है तो वहीं केंद्र सरकार की दलील है कि विपक्ष के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं क्योंकि केंद्र सरकार के पास कुल वसूले जा रहे ड्यूटी और टैक्स में से राज्यों से भी कम हिस्सा आता है. साथ ही सरकार जो पैसा वसूलती है, उसका इस्तेमाल जनहित की योजनाओं को लागू करने और अमल में लाने के लिए किया जाता है.

विपक्ष पिछले 2 दिनों से लगातार लोकसभा और राज्यसभा में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर हंगामा कर रहा है. राज्यसभा में लगातार दूसरे दिन विपक्ष के हंगामे के चलते कामकाज नहीं हो सका. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे का कहना है कि सरकार कह रही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और इसी वजह से देश में भी कीमतें बढ़ी हुई हैं, लेकिन सवाल यह है कि जब 2013-14 में यूपीए की सरकार थी, उस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर करीब 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, लेकिन तब भी देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत यहां तक नहीं पहुंची थी. मलिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या उस दौरान देश में विकास के काम नहीं होते थे?

वहीं, सरकार की दलील यही है कि केंद्र सरकार के ऊपर जो एक्साइज ड्यूटी के जरिए पैसा वसूलने के आरोप लगाए जाते हैं वह सही नहीं है क्योंकि हकीकत तो यह है कि पेट्रोल और डीजल के ऊपर जो कुल एक्साइज ड्यूटी और टैक्सेस लगते हैं, उसमें से केंद्र सरकार से ज्यादा कमाई तो राज्य सरकारों की होती है. सरकार की दलील के मुताबिक अगर तेल की कीमत 100 रुपये मान ली जाए तो करीबन 35 रुपये पेट्रोल को रिफाइन करने में खर्च होता है. उसके बाद राज्य सरकारें करीब 25 फीसदी टैक्स वसूलती हैं. साथ ही केंद्र सरकार से 15 फीसदी हिस्सा उसे एक्साइज ड्यूटी से मिलता है, यानी कि इस हिसाब से कुल 100 रुपये में से

-तेल की कीमत – करीब 35 रु
-राज्य सरकार का टैक्स – 25+15= करीब 40 रु
-केंद्र के हिस्से – करीब 25 रु

यानी कुल वसूले गए टैक्स और एक्साइज ड्यूटी में से राज्यों के पास करीब 40 फीसदी हिस्सा आता है तो केंद्र के पास करीब 25 फीसदी. इसी आधार पर केंद्र सरकार की दलील है कि इस 25 रुपये प्रति लीटर का ही इस्तेमाल कर देश में लाखों करोड़ों की योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो जनहित की हैं.

विपक्ष केंद्र सरकार के ऊपर पिछले 6 सालों के दौरान एक्साइज ड्यूटी और टैक्स के ज़रिए 21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाने का आरोप लगाता है. सरकार की दलीलों के मुताबिक सरकार को पिछले 6 सालों के दौरान अगर 21 लाख करोड़ मिला भी है तो उस पैसे का इस्तेमाल देश के लोगों के हित में किया गया है, विकास योजनाओं में किया गया है और जनहित की योजनाओं पर खर्च किया गया है. अगर सरकार की कमाई नहीं होगी तो समाज के शोषित, वंचित और जरूरतमंद लोगों तक योजना कैसे पहुंचेगी और विकास का काम कैसे होगा.

इसी दौरान इस सवाल का भी जवाब मिला कि आखिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ क्यों रही है. सामने आई जानकारी के मुताबिक पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का जितना उत्पादन होता था, आज की तारीख में उसका 90 फीसदी ही हो रहा है. यानी 10 फीसदी की कमी हुई है. उम्मीद थी कि उत्पादन 90 फीसदी से बढ़कर 100 फीसदी होगा, लेकिन हुआ नहीं और इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है.

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