संपादक की कलम से …..
छत्तीसगढ़ : प्रधानमंत्री ने “कोरोना” जैसी संक्रामक बीमारी से बचाव के लिए देश में 21 दिनों के लॉक-डाउन की घोषणा की, परन्तु वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन(W.H.O) किसी भी देश में लॉकडाउन को काफी नहीं मानता, भारत में मध्यम और शिक्षित वर्ग ने जहाँ प्रधानमंत्री के इस कदम का स्वागत किया है, वहीँ देश में निम्न आयवर्ग की अपनी समस्याएँ लॉक-डाउन के चलते अलग हैं, वे दिहाड़ी मजदूर, जो रोजी-रोटी के लिए घर से दूर काम पर निकले थे, उनके सामने जीवन बसर की दिक्कतें आ खड़ी हुई हैं, ऐसे मजदूर, दिल्ली जैसी जगह से हजारों की तादात में लॉक-डाउन के कारण कई मजदूर पैदल ही कई किलोमीटर की यात्रा पर घर जाने निकल पड़े हैं, इन समस्याओं से शासन-प्रशासन को भी जूझना पड़ रहा है, सरकारें उनकी मदद का पूरा भरोसा दिला रही है|
कोरोना के इलाज में, इन सबके अलावा कुछ सवाल भी चुनौती बने खड़े हो गए हैं, चिकित्सा विशेषज्ञों की माने तो लॉक-डाउन के साथ हमें आने वाले महिनों के लिए उपलब्ध चिकित्सा की सुविधाओं पर भी बारीकी से अध्यन करने की जरुरत है, “कोरोना” जैसी बीमारी से निपटने के लिए मानक स्तर के 70% अल्कोहल वाले सेनिटाईजर बाजार की मांग के अनुसार उपलब्ध नहीं है, वहीँ मास्क भी पूरे पड़ेंगे या नहीं, इस पर चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए चिंता की लकीरें हैं, वर्त्तमान में इस संक्रामक बीमारी के लिए विश्व में न ही इसकी दवा/ वेक्सिन अब तक चिकित्सा विज्ञान को उपलब्ध हो सकी है, सूत्रों की माने तो दवा/ वेक्सिन बन जाने के बाद भी इसे मानव पर परीक्षण के लिए कई महीनो का वक़्त लग जायेगा |
ऐसे में प्रश्न यह सामायिक है कि किस तरह कोरोना पीड़ित ठीक हो रहे हैं, चिकित्सकों की माने तो मलेरिया में उपयोग होने वाली दवा “हाइड्रोक्लोरोक्वीन सल्फेट” दवा परीक्षित है, और अभी इसका उपयोग भी कोरोना पीड़ित मरीजों के लिए आवश्यकतानुसार हो रहा है, सूत्रों के अनुसार इस दवा को आवश्यक दवा की केटेगरी में लेते हुए, कई राज्य सरकारों ने मेडिकल दुकानों को निर्देशित भी किया है, कि इसे बिना चिकित्सक की मांग पर नहीं दिया जा सकेगा, जानकारी के अनुसार वर्तमान में यह दवा अधिक मांग के कारण कई मेडिकल दुकानों में उपलब्ध भी नहीं हो पा रही, इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की माने तो कई बड़ी कंपनी यह दवा वर्तमान आवश्यकता को देखते हुए अपने ब्रांड में बनाने की अनुमति चाहती हैं, परन्तु लॉक-डाउन के कारण दवा बनाने के लिए लगने वाले रॉ-मटेरियल, लेबर कास्ट और ट्रांसपोर्टेशन की लागत कुछ इतनी बैठेगी, कि वह वर्तमान तय कीमत प्रति टेबलेट लगभग रु. 5.80 + टैक्स में कम्पनियों को हानि का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में ड्रग व औषधि मंत्रालयों के लिए आवश्यक है, कि बड़ी कंपनियों को भी जीवन रक्षक इस दवाई के उत्पादन की विधिवत अनुमति दे, साथ ही मानक कीमत पर इन्हें रॉ मटेरियल, लेबर व ट्रांसपोर्टेशन की उपलब्धता हो सके, इस पर भी सम्बंधित विभाग गंभीरता से काम करे | वर्तमान खतरे में जीवन रक्षक दवाइयों के लिए तय मानक दर से ज्यादा महत्वपूर्ण, उनका उत्पादन और देश के सुदूर छोटे से छोटे कस्बों में चिकित्सकों के लिए दवाइयों और मेडिकल आवश्यकताओं की सुलभ उपलब्धता का होना चाहिए, कई जगह यह भी मांग है, कि जीवन रक्षक आवश्यक दवाइयों को, वर्तमान संकट देखते हुए टैक्स फ्री करने पर ड्रग व औषधि मंत्रालय को विचार करना चाहिए|
लॉक-डाउन की परिस्तिथि में मेडिकल दवा उत्पादन कंपनी ठीक से चल पा रही है, रॉ-मटेरियल, लेबर व ट्रांसपोर्टेशन की कमी देखने का काम भी सम्बंधित विभागों को देखना होगा, ताकि आने वाले समय में “कोरोना वाइरस” से देश के गरीब तबके तक को महफूज़ रखा जा सके|