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काशी के महत्व को गहराई से समझा है पीएम मोदी और सीएम योगी ने

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“पहले मैं सोच रहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने मुझे यहां भेजा है. फिर लगता था कि शायद मैं काशी जा रहा हूं, लेकिन यहां आने के बाद लग रहा है कि ना किसी ने मुझे यहां भेजा है, ना मैं यहां आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है.” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बयान 24 अप्रैल 2014 को बनारस संसदीय सीट से नामांकन दाखिल करने से पहले दिया था. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था और राजनीतिक और रणनीतिक कारणों से उन्हें बनारस संसदीय सीट से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था. 2014 में नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने मां गंगा की महिमा का बखान किया, शिव की नगरी को नमन किया, बुद्ध का संदेश सुनने वाली धरती को संबोधित करते हुए कहा – ‘‘…मैं जिस गांव में जन्मा वडनगर, वो भी शिव का बहुत बड़ा तीर्थ है, वहां की शिवभक्त नागर कम्युनिटी बहुत बड़ी मात्रा में काशी में भी रहती है… जहां भगवान बुद्ध ने संदेश दिया था, वो वाराणसी सारनाथ की धरती, यही भोलेबाबा की धरती, यही संकट मोचन की सारी शक्तियां जहां अपरंपार हैं, वो भूमि, उस भूमि की सेवा करने का मुझे सौभाग्य मिला है और मेरा मन कहता है मैं आया नहीं हूं. किसी ने भेजा भी नहीं है. मां गंगा ने मुझे बुलाया है…’’

गंगोत्री में अपने उद्गम के बाद से ही मां गंगा दक्षिण की ओर, फिर पूरब की ओर बहती हुई लगभग 2500 किलोमीटर का सफर तय करती हैं. पश्चिम बंगाल पहुंच कर समुद्र में मिल जाती हैं. इस पूरी यात्रा में सिर्फ काशी ही ऐसी जगह है जहां मां गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं. दक्षिण से उत्तर की ओर करीब 4 मील का घुमाव है. पौराणिक मान्यता है कि लगभग आधी दूरी तय करने के बाद मां गंगा के मन में खुद को देखने की इच्छा जागृत हुई इसीलिए काशी में अपने उत्तर की तरफ देखने की कोशिश की और फिर आगे बढ़ चली. अब ये जो 4 मील का घुमाव है, इसी के किनारे बसी है काशी.

काशी. शिव की नगरी. एक पौराणिक शहर. कहते हैं कि विश्व के सबसे पुराने शहरों में से एक है काशी. संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख देखने को मिलता है- ‘काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:’ .

पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि महादेव हिमालय के निवासी हैं. एक और कथा भी है, जिसके मुताबिक भोलेनाथ काशी के निवासी हैं. कथा कुछ ऐसी है – भोलेनाथ ने गुस्से में ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया तो वह उनकी हथेली से चिपक गया. भोलेनाथ बहुत परेशान हुए. 12 साल तक अनेक तीर्थों का भ्रमण किया. सिर हथेली से अलग नहीं हुआ. जैसे ही वे काशी की सीमा में पहुंचे ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और कपाल अलग हो गया. इस जगह को कपालमोचन-तीर्थ कहा जाने लगा. 12 साल का कष्ट दूर करने वाली धरती महादेव को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने अपने आवास के लिए विष्णुजी से मांग लिया और तब से काशी भोलेनाथ का निवास स्थान बन गया.

कितनी ही बातें हैं जो काशी का महात्म्य लगातार बढ़ाती जाती हैं. गंगा, शिव और काशी. उत्तर भारत की यात्रा करने वाला हर भारतीय काशी आना चाहता है. गंगास्नान और शिव अराधना करना चाहता है. लेकिन ये तब ज्यादा प्रभावशाली लगने लगता है जब सूबे का मुखिया (जिनकी धार्मिकता और भक्ति की चर्चा दूर-दूर तक होती है) काशी विश्वनाथ के 100 बार दर्शन करने का कीर्तिमान बना देते हैं. सायास या अनायास, ये महत्व नहीं रखता. महत्व है शिव के दर्शन का. गोरखनाथ मंदिर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पूजा-अर्चना की खबरें और तस्वीरें पाठक पहले से पढ़ते-देखते आए हैं.

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