राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार सुबह संसद के दोनों सदनों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारत को पंगु बनाने वाली नीतियां अब बदल चुकी हैं. नई नीतियों से हमारा देश मजबूत बन रहा है. यही कारण है कि भारत अब मदद लेने वाला नहीं बल्कि मदद करने वाला देश बन रहा है. महामारी के दौरान पूरी दुनिया को टीका उपलब्ध कराकर अपने न सिर्फ अपनी काबिलियत दिखाई, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि साथ चलकर ही सतत विकास का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अनुमान लगाया है कि वित्तवर्ष 2023-24 में भारत की विकास दर 6 फीसदी से लेकर 6.8 फीसदी तक रह सकती है. यह बीते तीन साल में सबसे सुस्त विकास दर होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी के बाद तेजी से उबर रही थी, लेकिन रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से दोबारा दबाव में आ गई. ग्लोबल मार्केट में सप्लाई पर असर पड़ा तो महंगाई बेतहाशा भागने लगी और भारतीय अर्थव्यवस्था भी इसकी चपेट में आ गई.
रिजर्व बैंक को बदलनी पड़ी रणनीति
रॉयटर्स ने बताया कि महंगाई की मार महामारी से भी ज्यादा घातक साबित हो रही है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने कोविड के दौरान जो राहतें दीं थी, उसे महंगाई के दबाव में वापस लेना पड़ा. आरबीआई ने 2022-23 के लिए खुदरा महंगाई का अनुमान 6.8 फीसदी रखा था, लेकिन आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में इस अनुमान को बढ़ाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं अगले वित्तवर्ष के लिए भी खुदरा महंगाई की दर का अनुमान ज्यादा रह सकता है.
आरबीआई ने महंगाई के दबाव में रेपो रेट बढ़ाया
महंगाई का दबाव किस कदर दिखा इसकी बानगी रिजर्व बैंक के फैसलों से दिखाई देती है. आरबीआई ने इस साल मई से अब तक महंगाई को थामने के लिए रेपो रेट में 5 बार बढ़ोतरी की है. इस दौरान ब्याज दर 2.25 फीसदी बढ़ गई, जिससे कर्ज महंगा हो गया. हालांकि, महंगाई को कुछ हद तक थामने में सफलता मिल गई है.