बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने कहा है कि पासपोर्ट के रीन्यूअल के अधिकार से केवल पेंडिंग क्रिमिनल केस के आधार पर वंचित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. इस संबंध में जस्टिस अमित बोरकर की बॉम्बे हाई कोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में आदेश जारी किया है. खंडपीठ ने हाल ही में कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406, 420, 120 (बी) के तहत एक अपराध की लंबितता, जिसे धारा 34 के साथ पढ़ा जाए, एक आवेदक को अपने पासपोर्ट के रीन्यूअल के अधिकार से वंचित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. हाई कोर्ट विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट के नवीनीकरण की अस्वीकृति के खिलाफ एक आवेदक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
आवेदक ने पहले मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट 31वीं अदालत, विक्रोली, मुंबई के समक्ष आवेदन किया था कि उसका पासपोर्ट के रीन्यूअल के आदेश के लिए निर्देश जारी किए जाएं. लेकिन इस आवेदन को मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था. इसके लिए तर्क था कि अभी उस मामले की जांच पूरी नहीं हुई है, जिसमें आवेदक आरोपी है. उस मामले में एक आरोपी फरार है और सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना है. अदालत ने कहा कि पासपोर्ट के रीन्यूअल को पासपोर्ट अधिनियम के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित किया जाता है और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आवेदक को 17 जुलाई, 2017 से 11 अगस्त, 2019 तक अमेरिका की यात्रा करने की अनुमति दी थी. इसके अलावा, वहां ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आवेदक ने विदेश यात्रा की अनुमति देते समय कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों का उल्लंघन किया हो.
हाई कोर्ट ने दिए पासपोर्ट रीन्यूअल के आदेश
अदालत ने कहा कि ‘मामले के तथ्यों में केवल इसलिए कि धारा 406, 420, 120 (बी) के तहत आईपीसी के 34 के साथ पढ़ा गया अपराध आवेदक के खिलाफ लंबित है. उक्त तथ्य पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए आवेदक को अपने आप में अधिकार से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है. कोर्ट ने कहा कि आवेदक के पास मुंबई में अचल संपत्ति है और ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जिससे यह साबित हो कि उससे कोई जोखिम हो सकता है. इसके बाद हाईकोर्ट ने विक्रोली कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया. इसके अलावा, अदालत ने पासपोर्ट अधिनियम के प्रावधानों के तहत आवेदक की पात्रता की जांच करने और आवेदक के पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए आवेदन पर कानून के अनुसार आदेश पारित करने का निर्देश दिया.