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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला; जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं

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सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों के कुछ भी बोलने (freedom of speech) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आ गया है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा कोई भी अतिरिक्त प्रतिबंध भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत नागरिक पर नहीं लगाया जा सकता है. SC ने आगे कहा कि किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

लाइव लॉ के अनुसार इस मामले पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्‍ना (Justice BV Nagarathna) ने कहा कि हमारे जैसे देश के लिए जो एक संसदीय लोकतंत्र है, एक स्वस्थ लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए बोलने की स्वतंत्रता एक आवश्यक अधिकार है. साथ ही देश में नागरिकों को अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानकारी दी जाती है.

पांच जजों की संविधान पीठ का कहना है कि किसी भी बयान के लिए मंत्री खुद जिम्मेदार हैं. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न, न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम से इस बात पर सहमत हैं कि अनुच्छेद 19(2) के तहत आधारों के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अधिक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. जस्टिस नागरत्न ने आगे कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 के तहत मौलिक अधिकार संवैधानिक अदालतों में क्षैतिज रूप से लागू नहीं हो सकते हैं. लेकिन आम कानूनी उपाय उपलब्ध हैं.

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने आगे कहा कि संवैधानिक पदो पर बैठे लोगों को खुद आत्म निरीक्षण की जरूरत है कि वो जनता को क्या संदेश दे रहे हैं. यह पार्टी पर निर्भर करता है कि वह अपने मंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को नियंत्रित करें जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है. कोई भी नागरिक जो इस तरह के दिए गए भाषणों या सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा अभद्र भाषा के उपयोग से आहत महसूस करता है कोर्ट जा सकता है.

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