ग्रेच्युटी (Gratuity) को लेकर ज्यादातर लोगों को यही पता है कि इसका भुगतान सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के उन कर्मचारियों को किया जाता है, जो किसी एक कंपनी या नियोक्ता के साथ तय अवधि तक काम करते हैं. अब सवाल ये उठता है कि जो कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं, क्या उन्हें भी ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाता है. क्या उनकी ग्रेच्युटी अन्य कर्मचारियों से अलग होती है.
इस बारे में जब एक्सपर्ट से जानना चाहा तो कई रोचक जानकारियां सामने आईं. पता चला कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वालों के लिए भी ग्रेच्युटी एक्ट में प्रावधान दिया गया है. साथ ही उनके पक्ष में हाईकोर्ट का फैसला भी आया है. इतना ही नहीं सरकार तो उन्हें सिर्फ 1 साल में ही ग्रेच्युटी दिलाने का कानून बनाने की तैयारी में है. कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वालों को भी तय समय सीमा के बाद ग्रेच्युटी दिया जाना जरूरी है. इसके क्लेम का प्रोसेस भी सामान्य कर्मचारियों जैसा ही है.
क्या है मौजूदा कानून
ग्रेच्युटी एक्ट 1972 कहता है कि यदि कोई कर्मचारी किसी एक नियोक्ता या कंपनी के साथ 5 साल अथवा उससे ज्यादा समय तक लगातार काम करता है तो वह ग्रेच्युटी का हकदार है. कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वालों को भी इसका अधिकार दिया गया है. हालांकि, इसमें कहा गया है कि वह जिस कंपनी के लिए काम करता है, उसके बजाए उस काम के लिए जिसके साथ कर्मचारी का कॉन्ट्रैक्ट हुआ है, वह ग्रेच्युटी का भुगतान करेगा. यानी अगर कोई प्लेसमेंट एजेंसी अपनी ओर से कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारी कंपनी को मुहैया कराती है तो वह एजेंसी ही तय अवधि के बाद ग्रेच्युटी का भुगतान करेगी.
क्या है हाईकोर्ट का आदेश
मद्रास हाईकोर्ट ने साल 2012 में एक मामले में फैसला दिया था कि अगर कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी को उसका कॉन्ट्रैक्टर ग्रेच्युटी एक्ट 1972 की धारा 21(4) के तहत ग्रेच्युटी का भुगतान करने में असफल रहता है तो प्रिंसिपल एम्प्लॉयर यानी जिस कंपनी के लिए वह कर्मचारी सीधे तौर पर काम करता है, उसे ग्रेच्युटी एक्ट 1972 के सेक्शन 4(6 डी) के तहत इसका भुगतान करेगा. हालांकि, नियोक्ता को यह अधिकार होगा कि वह कॉन्ट्रैक्टर कंपनी से अपनी राशि वसूल कर सके.