Home राष्ट्रीय खाने के लगभग सभी ऑयल हुए सस्ते, जानिए अब कितने रुपये लीटर...

खाने के लगभग सभी ऑयल हुए सस्ते, जानिए अब कितने रुपये लीटर मिल रहा है सरसों का तेल

39
0

विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में आयातित तेलों के साथ-साथ सभी देशी तेल-तिलहनों पर दबाव कायम हो गया जिससे सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, बिनौला, कच्चा पामतेल (CPO), पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट आई. बाजार के जानकार सूत्रों ने बताया कि विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के दाम टूटने से सभी तेल- तिलहन कीमतों पर दबाव कायम हो गया लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं है. इसकी वजह सरकार की तेल आयात के संबंध में अपनाई गई ‘कोटा सिस्टम’ है. कोटा सिस्टम लागू होने के बाद बाकी आयात ठप पड़ने से बाजार में कम आपूर्ति की स्थिति से सूरजमुखी और सोयाबीन तेल उपभोक्ताओं को पहले से कहीं अधिक दाम पर इनकी खरीद करनी पड़ रही है.

पिछले साल सोयाबीन और पामोलीन के भाव में जो अंतर 10-12 रुपये का होता था वह इस वर्ष बढ़कर लगभग 40 रुपये प्रति किलो का हो गया है. पामोलीन इस कदर सस्ता हो गया है कि इसके आगे कोई और तेल टिक नहीं पा रहा है. यही वजह है कि जाड़े की मांग होने के बावजूद खाद्य तेलों के भाव भारी दबाव में नीचे जा रहे हैं.

सूत्रों ने कहा कि बिनौला में यही हाल है. एक तो विदेशों में बाजार टूटे हुए हैं और किसान सस्ते में बिक्री के लिए मंडियों में कम आवक ला रहे हैं. इस वजह से जिनिंग मिलें चल नहीं पा रही हैं जो बिनौला से रुई और नरमा को अलग करती हैं. छोटे उद्योगों की हालत बहुत ही खराब है. कोटा सिस्टम से किसान, तेल उद्योग और उपभोक्ताओं में से किसी को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है.

कोटा सिस्टम से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा
सूत्रों ने कहा कि देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण किसान हैं और उसके बाद उपभोक्ता और फिर ऑयल इंडस्ट्री का स्थान है. इन सभी के हितों में समुचित सामंजस्य कायम करने में बड़े तेल संगठनों की अहम भूमिका होनी चाहिए. लेकिन कोटा सिस्टम से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा है यानी खाद्य तेलों के दाम सस्ता होने के बजाय महंगा हो गए हैं. इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. देश के प्रमुख तेल संगठनों का दायित्व बनता है कि वे सरकार को जमीनी सचाई बताये और समुचित रास्ते के बारे में परामर्श दे. सूत्रों के मुताबिक खाद्य तेल में आत्मनिर्भर होने के लिए सरकार को बहुत प्रयास करने होंगे और इसके लिए खाद्य तेलों का वायदा कारोबार को न खोलना सबसे अहम है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here