डॉक्टर भीमराव अंबेडकर 14 अप्रैल 1891 के दिन मऊ में पैदा हुए थे. इसके बाद अपनी मेघा और संघर्ष के बल पर वह उस शीर्ष पर पहुंचे कि सभी के लिए एक उदाहरण बन गए. देश का संविधान बनाने वाली समिति के वो अध्यक्ष थे. अंबेडकर तार्किक शख्सियत थे. उनके तर्कों और बातों का लोहा बड़े से बड़े नेता ने माना. अंबेडकर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस लगभग एक ही दौर के नेता थे. दोनों ही अपने समय में अलग वर्ग और लोगों के बीच खासे लोकप्रिय थे.
आजादी की लड़ाई के दौरान दोनों के लक्ष्य अलग थे. मुद्दे अलग. सुभाष की मुलाकात अंबेडकर से सिर्फ एक बार 1940 में मुंबई में हुई. तब सुभाष यूरोप से लौटे थे. 22 जुलाई 1940 को इन दो बड़े नेताओं की मुलाकात हुई.
दोनों के बीच फेडरेशन को लेकर बहुत सी बातें हुईं. इसी दौरान अंबेडकर ने बोस से अनुसूचित जातियों को लेकर एक सवाल पूछा, जिसका जवाब उन्हें बहुत संतुष्टदायक नहीं लगा.
जातियों को लेकर क्या थे सुभाष के विचार
वैसे हमें देखना चाहिए कि जातियों को लेकर सुभाष के विचार क्या थे. उन्होंने एक भाषण में इस बारे में क्या कहा था. ये उनका चर्चित भाषण था. भाषण का विषय था भारत की मूलभूत समस्याएं. इसे उन्होंने टोक्यो विश्वविद्यालय में टीचर्स और स्टूडेंट्स के सामने नवंबर 1944 में दिया था.
जातियों के संबंध में नेताजी के भाषण के अंश-
जहां तक जाति का सवाल है, हमारे लिए ये आज कोई समस्या नहीं है, क्योंकि प्राचीन काल में जिस तरह की जाति थी, वो आज नहीं है. अब जाति, व्यवस्था का क्या अर्थ है. जाति व्यवस्था का अर्थ है कि समाज पेशागत आधार पर कुछ समूहों में बंटा है और शादियां उन समूहों के अंदर होती हैं.
आधुनिक काल में भारत में जाति के आधार पर किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है. किसी भी जाति का व्यक्ति कोई भी पेशा अपनाने को आजाद है. तो इस अर्थ में आज हमारे यहां जाति व्यवस्था नहीं है. फिर सवाल विवाह का रह जाता है. पुराने समय में ये प्रथा थी कि लोग अपनी जाति में विवाह करते थे. आज अंतरजातीय विवाह आम है. जाति का तेजी से लोप हो रहा है. सच्चाई तो ये है कि राष्ट्रीय आंदोलन में हम किसी व्यक्ति की जाति कभी नहीं पूछते और अपने कुछ निकटतम सहयोगियों की तो जाति भी नहीं जानते.
सुभाष के प्रशंसक भी थे अंबेडकर
वैसे ऐसा लगता है कि अंबेडकर खुद सुभाष के प्रशंसक थे. उन्होंने ‘बीबीसी’ के फ्रांसिस वॉटसन को फरवरी 1955 में एक साक्षात्कार दिया. जिसमें उन्होंने साफ कहा कि भारत को आजादी शायद सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और उपजे व्यापक असर की वजह से मिली.
किस बात से डर गए थे अंग्रेज
फ्रांसिस वॉटसन से इस साक्षात्कार में बाबा साहब अंबेडकर ने कहा, ‘अंग्रेज मान कर चल रहे थे कि ब्रिटिश फौज में शामिल हिंदुस्तानी कभी भी उनके प्रति अपनी वफादारी नहीं बदलेंगे. यह अलग बात है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आईएनए के पराक्रम के किस्से सुनने के बाद ब्रिटिश फौज में शामिल भारतीय सैनिकों के मन में भी विद्रोह के स्वर फूटने लगे थे. इसके अलावा आईएनए के 40 हजार सैनिकों के भारत आने की खबर ने भी अंग्रेजों को महसूस करा दिया कि इस देश में अब उनका राज करना मुश्किल है. ये देश बदलने लगा है.’