भारत और दक्षिण अफ्रिका (South Africa) दोनों ही देशों को आजादी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा. जहां भारत की आजादी में गांधी जी (Mahatma Gandhi) के योगदान को बहुत बड़ा माना जाता है तो वहीं दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) को वहां का गांधी कहा जाता है. लेकिन दोनों देशों की कहनी बहुत अलग भी है. जहां भारत में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी गई तो दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष आजादी के साथ रंगभेद के भी खिलाफ था इसी तरह नेल्सन मंडेला का भी संघर्ष एक अलग ही कहानी है. 5 दिसंबर को दुनिया उनकी पुण्यतिथि पर उनके योगदान के लिए याद कर रही है.
वकालत के लिए छोड़ा पद
नेल्सन रोलिह्लाला मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका के केप प्रांत में उम्टाटा के म्वेजो गांव में 18 जुलाई 1918 को हुआ था. नेल्सन के पिता म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे, उनकी शिक्षा मिशनरी स्कूलों में हुई. 12 साल की उम्र में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद उन्होंने वाकालत की पढ़ाई के लिए अपने जाति के सरदार पद को छोड़ दिया था.
वकालत के दौरान नस्लभेद और भेदभाव के खिलाफ
1941 में 23 साल की उम्र में मंडेला अपनी ही शादी से उठकर जोहानिसबर्ग भाग गए थे. दो साल बाद वो अफ्रीकानेर विटवाटरस्रांड विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई करने लगे, जहां उनकी मुलाकात अलग अलग नस्लों और पृष्ठभूमि के लोगों से हुई. इस दौरान वो उदारवादी, कट्टरपंथी और अफ्रीकी विचारधाराओं के संपर्क में आए. नस्लभेद और कई तरह के भेदभाव के चलते राजनीति के प्रति उनमें जुनून पैदा हुआ.