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कम नींद लेने वाले छात्रों में डिप्रेशन का रिस्क ज्यादा, महिलाएं हो रही सबसे ज्यादा प्रभावित: रिसर्च

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आजकल के लाइफस्टाइल में नींद ना आना एक कॉमन प्रोब्लम है, लेकिन इस पर ध्यान देना जरूरी है. ये आपकी मानसिक सेहत को भी प्रभावित कर सकती है. अनियमित खानपान, काम का स्ट्रेस, दिन-रात का वर्किंग स्टाइल, ये सब हमारी नींद को प्रभावित करता है. और इसका असर हमारे निजी जीवन पर भी पड़ता है, नींद ना आने की वजह से हमारा व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है, हमें गुस्सा आता है, झल्लाहट होने लगती है. अब ये समस्या छात्रों में भी देखने को मिली है. एक नई स्टडी के निष्कर्ष में पता चला है कि नींद की कमी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को प्रभावित करती है. स्टडी में शामिल लगभग 65.5 फीसदी छात्रों ने खराब नींद का अनुभव किया और ये मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं (Mental Health Problems) से जुड़ा है. पीयर-रिव्यू जर्नल एनल्स ऑफ ह्यूमन बायोलॉजी (Annals of Human Biology) में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, अपर्याप्त नींद की आदतों से अवसाद (Depression) से पीड़ित होने की आशंका लगभग 4 गुना अधिक है.

रिचर्सर्स के अनुसार, इस स्टडी में सामने आया कि 55 फीसदी छात्रों के बीच ईडीएस यानी एक्सेसिव डे टाइम स्लीपनेस (Accessive Daytime Sleepiness) एक समस्या थी. आपको बता दें कि एक्सेसिव डे टाइम स्लीपिनेस का मतलब होता है दिन में अत्यधिक नींद आना. इस वजह से उनमें अवसाद (Depression) या मध्यम से उच्च तनाव के स्तर (Stress Level) का अनुभव होने की आशंका लगभग दोगुनी थी.

नींद की कमी से महिलाएं ज्यादा प्रभावित
इसके अलावा, स्टडी में जेंडर डिवीजन पर प्रकाश डाला गया तो, महिलाओं में नींद की कमी और ईडीएस अधिक पाया गया है. इसका निष्कर्ष यह है कि महिलाएं नींद की कमी के चलते मेंटल हेल्थ से ज्यादा प्रभावित हैं.

छात्रों को क्या समस्या आती है
इस स्टडी में शामिल फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ मैटो ग्रोसो ब्राजील (Federal University of Mato Grosso Brazil) में पोषण संकाय (Faculty of Nutrition) के प्रमुख डॉ पाउलो रोड्रिग्स (Dr. Paulo Rodrigues) कहते हैं कि स्लीप डिसऑडर (sleep disorders) यानी नींद संबंधी विकार विशेष रूप से कॉलेज के छात्रों के लिए हानिकारक हैं, क्योंकि वे अकादमिक जीवन पर कई नकारात्मक प्रभावों से जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि इस वजह से छात्रों को ध्यान लगाने में मुश्किल, कॉलेज में एब्सेंट होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

डॉ पाउलो रोड्रिग्स ने कहा कि यूनिवर्सिटी का एन्वायरमेंट अकादमिक स्ट्रेस (academic stress) और सोशल लाइफ में नींद की आदतों से समझौता करने जैसे रिस्क को अधिक बढ़ाता है. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट्स को इंस्टीट्यूश्नल एक्शन और पॉलिसिस के इम्लीमेंटेशन की योजना बनानी चाहिए. यह उन एक्टिविटीज के डेवलपमेंट को प्रोत्साहित करेगा, जो अच्छी नींद की आदतों को बढ़ावा देने और छात्रों की मेंटल हेल्थ को फायदा पहुंचाने में मददगार होगा.

1100 से अधिक छात्र स्टडी में शामिल
स्टडी में शोधकर्ताओं ने 16 से 25 साल की उम्र के 1,113 ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएशन में पढ़ रहे छात्रों को शामिल किया. स्टडी के तहत प्रतिभागियों से उनकी नींद की गुणवत्ता, ईडीएस, सामाजिक आर्थिक स्थिति के बारे में पूछा गया और उनके बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का भी आकलन किया गया. इस आधार पर खराब नींद की गुणवत्ता / ईडीएस, और अवसादग्रस्तता के लक्षणों और कथित तनाव के स्तर के बीच संबंध का अनुमान लगाया गया.

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