राज्यसभा (Rajya Sabha) में गत के हंगामे की जांच के लिए विशेष अनुशासनात्मक समिति गठित करने की राज्यसभा सभापति एम वेंकैया नायडू की योजना को लेकर गतिरोध पैदा हो गया है. सभी विपक्षी दलों ने इस समिति का हिस्सा बनने से वस्तुत: इनकार कर दिया है. सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने नायडू को पत्र लिखकर इस समिति का हिस्सा बनने से इनकार किया तो तृणमूल कांग्रेस से इस जांच समिति में शामिल होने के लिए नहीं कहा गया. तृणमूल के कुछ सदस्य पिछले सत्र के दौरान हुए हंगामे के केंद्रबिंदु थे.
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उन्हें चार सितंबर को नायडू की ओर से फोन आया था और यह प्रस्ताव दिया गया था कि मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को उच्च सदन में हुई घटना की जांच के लिए समिति बनाई जाए. खड़गे ने कहा कि उनकी पार्टी इस समिति का हिस्सा नहीं होगी क्योंकि यह सदस्यों को डरा धमकाकर चुप कराने एक प्रयास है. नायडू को लिखे पत्र में खड़गे ने कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सदन में रचनात्मक चर्चा चाहते थे.
यह मामला अब खत्म हो चुका है- खड़गे
उन्होंने आरोप लगाया कि न सिर्फ चर्चा की मांग को नहीं माना गया, बल्कि उन विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कराने की कोशिश की गई जिनका देश पर गंभीर एवं प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है. खड़गे ने वरिष्ठ भाजपा नेता दिवंगत अरुण जेटली के उस कथन का भी उल्लेख किया कि ‘संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना भी लोकतंत्र का एक स्वरूप है.’ कांग्रेस नेता ने कहा कि 11 अगस्त से संबंधित मुद्दे पर आगे सर्वदलीय बैठकों में भी चर्चा की जा सकती है.
खड़गे ने कहा, ‘यह मामला अब खत्म हो चुका है और अब इसे उठाना उचित नहीं है. अगले सत्र के समय हम इस पर संज्ञान ले सकते हैं.’ उनके मुताबिक, अब इस पर कोई अनुशासनात्मक समिति बनाना उचित नहीं होगा और इससे बचना चाहिए. द्रमुक नेता तिरुची शिवा ने कहा कि उनकी पार्टी भी विपक्ष के साथ खड़ी होगी और ऐसी किसी समिति में शामिल नहीं होगी.
उल्लेखनीय है कि मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में बीमा संबंधी विधेयक को पारित कराने का विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया और इसके बाद सदन में जमकर हंगामा हुआ. सरकार ने विपक्षी सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की तो कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने सरकार पर ‘लोकतंत्र की हत्या’ का आरोप लगाया.