विदेश और सामरिक मामलों के जानकार कहते हैं कि वो कोरोना काल ही था जब भारत ने बांग्लादेश के साथ पर्दे के पीछे से कूटनीतिक संबंधों को बेहतर करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश दौरे का कूटनीतिक महत्व तो है ही, लेकिन इसके जरिये राजनीतिक फायदे लेने के मायने भी निकाले जा रहे हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री के दौरे के वक्त ही पश्चिम बंगाल में पहले चरण की 30 सीटों पर वोटिंग हुई है. यहां बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा काफी जोर-शोर से उठाया है. ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि बांग्लादेश से बेहतर संबंधों की पहल के जरिए बीजेपी अल्पसंख्यक मतदाताओं का विश्वास हासिल करना चाहती है. साथ ही मोदी ने अपने इस दौरे के जरिये यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि बांग्लादेश को तीस्ता नदी का पानी बेरोकटोक मिलता रहे, इसलिये भी पश्चिम बंगाल में सत्ता परिवर्तन होना जरुरी है.
हालांकि दोनों देशों के रिश्तों को लेकर दो साल पहले जो खटास आई थी, वह अब खत्म हो चुकी है और उसका ही नतीजा है कि बांग्लादेश ने अपनी स्थापना की गोल्डन जुबली के मौके पर मोदी को वहां आमंत्रित किया. बात दें कि साल 2019 में बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में तल्ख़ी तब देखने को मिली जब केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून पारित किया. तब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस क़ानून को ‘अनावश्यक’ बताया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच प्रस्तावित कई द्विपक्षीय दौरों और मुलाक़ातों को रद्द कर दिया गया था.
विदेश और सामरिक मामलों के जानकार कहते हैं कि वो कोरोना काल ही था जब भारत ने बांग्लादेश के साथ पर्दे के पीछे से कूटनीतिक संबंधों को बेहतर करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे. मोदी की यात्रा से पहले बांग्लादेश गए विदेश मंत्री जयशंकर ने तीस्ता जल समझौते को छोड़ व्यापार, साझा परियोजनाओं और सीमा विवाद जैसे कई मसलों पर आपसी सहमति बना ली थी. हालांकि, तीस्ता नदी जल बंटवारे के मुद्दे के अलावा भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग के प्रयास चल रहे हैं. लेकिन तीस्ता जल बंटवारा ऐसा अहम मुद्दा है जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ऐतराज के कारण दोनों देशों के बीच यह समझौता अब तक लागू नहीं हो पाया.
तीस्ता समझौता लागू न हो पाना भारत के लिए थोड़ी चिंता का विषय इसलिये बन गया है क्योंकि हाल ही में चीन ने तीस्ता परियोजना के लिए बांग्लादेश को एक अरब डॉलर की मदद का देने का एलान किया है.
लिहाज़ा सवाल ये उठ रहा है कि तीस्ता नदी मामले में चीन की इस मदद को किस नज़रिए से देखा जाना चाहिए? जानकारों का मानना है कि चीन का ये क़दम भारत को परेशान करने की एक कोशिश है.
दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध के अध्यापक प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि “तीस्ता जल बंटवारा एक संवेदनशील मुद्दा है और चीन उसी के लिए एक अरब डॉलर का योगदान करना चाह रहा है.”
पत्रकार निर्माल्य मुखर्जी भी मानते हैं कि चीन भारत पर दबाव डालने के लिए बांग्लादेश में दिलचस्पी दिखा रहा है क्योंकि उन्हें पता है कि ममता बनर्जी ने पहले ही केंद्र सरकार पर दबाव बनाया हुआ है, तो भारत की मुसीबत इससे और बढ़ जाएगी.”
क्या है तीस्ता जल बंटवारा मामला?
तीस्ता नदी भारत से बांग्लादेश जाने वाली 54 नदियों में से एक है. तीस्ता का उद्गम सिक्किम से होता है और ये पश्चिम बंगाल से होती हुई असम में जाकर ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है और इस तरह बांग्लादेश तक जाती है. बांग्लादेश चाहता है कि तीस्ता का पानी दोनों देशों में बराबर बांटा जाए. तीस्ता नदी के पानी को लेकर बांग्लादेश और भारत के बीच होने वाले समझौते पर मुख्य आपत्ति मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही है.
उनका कहना है कि अगर तीस्ता का पानी बांग्लादेशा से साझा किया गया तो पश्चिम बंगाल में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. क्योंकि उत्तर बंगाल के छह जिले तीस्ता नदी के पानी पर ही निर्भर हैं. ममता का कहना है कि तीस्ता नदी के सहारे सिक्किम में कई पनबिजली परियोजनाएं चल रही हैं. इन परियोजनाओं के लिए ज़रूरी पानी के बाद ही पश्चिम बंगाल में इसका पानी आता है. तीस्ता की धारा भी काफ़ी कमज़ोर है. पश्चिम बंगाल का तर्क है कि इतना पानी नहीं बचता है कि उसका बांग्लादेश के साथ बंटवारा किया जा सके.