कोलकाता के सबसे बड़े बिजनेस हब बड़ा बाजार की चहल-पहल के बीच हिंदी और इससे जुड़ी बोलियां बोलने वाले लोगों को देखकर आपको एहसास होगा कि आप किसी हिंदी भाषी प्रदेश में आ गए हैं। बड़ा बाजार में यूपी-बिहार, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से आए लोग पीढ़ियों से बसे हैं। इसीलिए बड़ा बाजार को ‘मिनी भारत’ भी कहा जाता है। संख्या के लिहाज से हिंदी बोलने वाले सबसे ज्यादा हैं।
कोलकाता का बड़ा बाजार एक सैंपल है, जिससे बंगाल में हिंदी भाषियों की मौजूदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहां कोलकाता के अलावा नॉर्थ 24 परगना, सिलीगुड़ी, आसनसोल, दुर्गापुर, पुरूलिया और खड़गपुर में हिंदी भाषियों की तादाद इतनी है कि वे चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
बंगाल की आबादी करीब 11 करोड़ है और इसमें सवा करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी हैं। जिनमें से करीब 72 लाख वोटर हैं। बंगाल की चुनावी रस्साकशी में हर पार्टी हिंदी भाषियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। CM ममता बनर्जी ने जनवरी में हिंदी भाषियों को अपने दफ्तर में बुलाया था और उनसे तृणमूल को समर्थन देने की अपील की थी। ममता पूर्वी भारत की पहली हिंदी यूनिवर्सिटी शुरू करने का काम भी कर चुकी हैं, हालांकि यह यूनिवर्सिटी अभी तक शुरू नहीं हुई है।
‘बंगाली गौरव’ की राजनीति करने वाली ममता का रुख 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ अलग था। इस चुनाव के दौरान उन्होंने बयान दिया था कि जो बंगाल में रहता है, उसे बंगाली सीखनी होगी। इसके बाद भाजपा ने आरोप लगाया था कि ममता बंगाली और नॉन बंगाली लोगों को आपस में भिड़ाना चाहती हैं। बंगाल की सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं, ‘2019 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश के हिंदी भाषी लोगों का ज्यादा वोट भाजपा की तरफ गया, लेकिन हिंदी भाषियों की अच्छी-खासी संख्या ममता समर्थक भी है।’
प्रदेश में 15% नॉन बंगाली, अधिकतर बड़े बिजनेसमैन नॉन बंगाली
बंगाल की कुल पॉपुलेशन में करीब 15% नॉन बंगाली हैं। नॉन बंगालियों में सबसे ज्यादा हिंदी भाषी ही हैं। हिंदी भाषियों का प्रभाव इसी से पता चलता है कि कोलकाता के ज्यादातर बड़े उद्योगपति नॉन बंगाली हैं। ये राजस्थान-बिहार जैसे राज्यों से यहां आकर बसे हैं। बड़ा बाजार का पूरा कंट्रोल इन्हीं उद्योगपतियों के हाथ में है। 2014 में केंद्र में BJP की सरकार आने के बाद पार्टी ने पश्चिम बंगाल के हिंदी भाषियों में पैठ बनानी शुरू की। 2019 में लोकसभा में भाजपा को मिली सफलता में हिंदी भाषी वोटों का अहम योगदान माना जाता है।
बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, ‘हिंदी भाषी कई सीटों पर निर्णायक हैं, इसलिए हर पार्टी उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है। सिलीगुड़ी जैसे जिले में तो इनकी आबादी 50% के करीब है। लोकसभा चुनाव में इन लोगों के वोट BJP को एकतरफा मिले।’ लेकिन, प्रभाकर आगे यह भी कहते हैं कि पिछले दस साल में राज्य में ममता सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया कि हिंदी भाषी उनसे नाराज हो जाएं। बंगाल में बिहारियों की एक बड़ी आबादी रहती है। राज्य सरकार ने छठ पूजा पर यहां दो दिनों की छुट्टी कर रखी है।’
TMC के पूर्व सांसद और वर्तमान में पार्टी के हिंदी प्रकोष्ठ के प्रेसिडेंट विवेक गुप्ता कहते हैं ,’पिछले दस सालों में दीदी ने राज्य में 600 हिंदी मीडियम के स्कूल दिए। 7 कॉलेज दिए, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।’ गुप्ता के मुताबिक, हिंदी प्रकोष्ठ की स्थापना भी इसलिए की गई है, ताकि हिंदी भाषियों की दिक्कतों को दूर किया जा सके।
हालांकि, BJP के प्रदेश प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य आरोप लगाते हैं कि TMC बंगाली और नॉन बंगाली के बीच लड़ाई करवाना चाहती है, जबकि BJP मानती है कि बंगाल में रहने वाला हर व्यक्ति बंगाली है।
‘ममता सरकार से 10 हजार रुपए लैपटॉप के लिए मिले’
हिंदी भाषी वोटों का रुझान किसी एक तरफ है, यह कहना मुश्किल है। बड़ा बाजार में फुटपाथ पर बैग की दुकान लगाने वाले राकेश गुप्ता UP से हैं। अपने माता-पिता के साथ बंगाल आए थे, फिर यहीं बस गए। वे कहते हैं, ‘बच्चे की पढ़ाई के लिए ममता सरकार ने हमारे अकाउंट में दस हजार रुपए डाले हैं, ताकि हम लैपटॉप खरीद सकें।’ बंगाल में TMC का ही राज चलना चाहिए, क्योंकि यह सरकार गरीब समर्थक है।’
वहीं, साड़ी व्यापारी मनोज सिंह भी UP से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन अब बंगाल में ही बस चुके हैं। वे कहते हैं, ‘इस बार बंगाल में परिवर्तन का माहौल है। राज्य में कारोबार की ग्रोथ नहीं हो रही। कारखाने बंद पड़े हैं। बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है।’
हिंदी भाषी लोगों से बातचीत में यही पैटर्न नजर आता है। हिंदी भाषियों का मध्यम वर्ग BJP के पक्ष में परिवर्तन की बात करता है, लेकिन लेबर क्लास और छोटे कारोबारी ममता सरकार को ठीक बताते हैं।