देश का कोई भी शासकीय पर्व हो ग्वालियर के बिना अधूरा ही होता है, क्योंकि भारत के आधे से अधिक राज्यों में ग्वालियर में बने तिरंगे ही फहराए जाते हैं. लेकिन, राष्ट्रीय ध्वज को बनाना इतना आसान भी नहीं है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ही एक झंडा तैयार होता है. तो आइए आपको बताते हैं किस तरह से ग्वालियर में तैयार होता है तिरंगा.
मध्य भारत खाद्य संघ ग्वालियर का इतिहास काफी पुराना है और यह संस्था बीते कई वर्षों से तिरंगा तैयार कर रही है. आपको बता दें कि उत्तर भारत में ग्वालियर ही इकलौता शहर है, जहां तिरंगा तैयार कर 16 से अधिक राज्यों में भेजा जाता है. मध्य भारत खादी संघ के मंत्री रमाकांत शर्मा ने बताया कि तिरंगे झंडे का निर्माण संस्था द्वारा काफी समय से किया जा रहा है.
1956 में हुई थी संस्था की स्थापना
रमाकांत शर्मा ने बताया कि तिरंगे में विशेषकर तीन प्रकार के झंडे यहां तैयार किए जाते हैं, जो 2 बाई 3, 4 बाई 6 तक की साइज के होते हैं. यहां एक साल में लगभग 10 से 12 हजार खादी के झंडे तैयार होते हैं. बताया कि इस केंद्र की स्थापना 1925 में की गई थी. इसके बाद 1956 में इस आयोग का गठन किया गया था. राष्ट्रीय ध्वज तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. रुई तथा कपड़ों का सिलेक्शन सबसे महत्वपूर्ण होता है.
15 परीक्षणों से गुजरने के बाद तैयार होता है तिरंगा
ध्वज निर्माता इकाई की मैनेजर नीलू ने बताया कि लगभग 15 से अधिक परीक्षणों के बाद एक ध्वज तैयार किया जाता है. इसके लिए सबसे पहले रुई का चयन करना होता है, जिसके बाद कपड़ा तैयार होता है. उसके बाद उस कपड़े की थिकनेस को नापा जाता है. कपड़े का वजन भी किया जाता है. इस तरह से करीब 15 प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद एक ध्वज तैयार होता है. यही कारण है कि ध्वज को तैयार करने में काफी समय लगता है. राष्ट्रीय ध्वज बनाते समय कई सारे नियमों को भी देखना होता है, जैसे कपड़े का रंग, अशोक चक्र सहित अन्य नियमों का पालन करना होता है.