करीब 50 साल पहले केंद्र सरकार ने गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर एमसी मिश्रा को यह पता लगाने के लिए नियुक्त किया था कि जोशीमठ क्यों डूब (Joshimath Sinking) रहा है? उनके नेतृत्व वाली 18 सदस्यीय समिति द्वारा इस बाबत एक रिपोर्ट पेश की गई. इसमें साफ तौर पर बताया गया कि उत्तराखंड (Uttarakhand) में जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र (Joshimath landslide) पर स्थित है और अगर विकास जारी रहा तो यह डूब सकता है. रिपोर्ट में सिफारिश की गईं कि जोशीमठ में निर्माण प्रतिबंधित किया जाए, वरना यह डूब जाएगा. रिपोर्ट इससे अधिक भविष्यसूचक नहीं हो सकती थी. अब जब जोशीमठ इस कगार पर आ खड़ा हुआ है तो हमें यह जानने की सख्त जरूरत है कि आखिर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या-क्या कहा गया, जिस पर उस तरीके से विचार नहीं किया गया, जैसे कि होना चाहिए था… आइये जानते हैं
रिपोर्ट की प्रमुख बातें …
-moneycontrol के अनुसार, जैसा कि 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने बताया था… जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है, जो चट्टान नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है. अलकनंदा और धौली गंगा नदियां.. नदी के किनारों और पहाड़ के किनारों को मिटाकर भूस्खलन को ट्रिगर करने में अपनी भूमिका निभाती हैं. निर्माण गतिविधि में वृद्धि और बढ़ती आबादी क्षेत्र में लगातार भूस्खलन में योगदान देंगी.
-रिपोर्ट में कहा गया कि “जोशीमठ रेत और पत्थर का जमाव है – यह मुख्य चट्टान नहीं है – इसलिए यह एक बस्ती के लिए उपयुक्त नहीं था. ब्लास्टिंग, भारी यातायात आदि से उत्पन्न कंपन से प्राकृतिक कारकों में असंतुलन पैदा होगा…”
-उचित जल निकासी सुविधाओं का अभाव भी भूस्खलन का कारण बनता है. सोख्ता गड्ढों का अस्तित्व, जो पानी को धीरे-धीरे जमीन में सोखने की अनुमति देता है, मिट्टी और शिलाखंडों के बीच गुहाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पानी का रिसाव और मिट्टी का क्षरण होता है.
-रिपोर्ट में सुझाया गया सबसे महत्वपूर्ण निवारक उपाय भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाना था. मिट्टी की भार वहन क्षमता और स्थल की स्थिरता की जांच के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए और ढलानों की खुदाई पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
-इसमें कहा गया कि सड़क की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्य के लिए सलाह दी जाती है कि पहाड़ी की तरफ खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाए. इसके अलावा, भूस्खलन क्षेत्रों में पत्थरों और शिलाखंडों को पहाड़ी के नीचे से नहीं हटाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाएगी. ढलानों पर जो दरारें बन गई हैं उन्हें सील कर देना चाहिए.