भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार संधि) को लेकर चर्चा काफी दिनों से जारी है. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत में अपने दौरे के समय इसका जिक्र किया था, लेकिन वहां हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बीच इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. अब ऋषि सुनक के यूके का प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार फिर भारत-ब्रिटेन एफटीए सुर्खियों में आ गया है. दिवाली के समय ब्रिटिश हाई कमीश्नर एलेक्स एलिस ने दोनों देशों के बीच एफटीएफ होने को लेकर संभावना जताते हुए कहा था कि ये दोनों देशों के लिए अच्छा होगा.
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लेकिन होता क्या है? क्या इसमें दो देशों के बीच व्यापार को पूरी तरह से मुक्त कर दिया जाता है? इससे एफटीए समझौते वाली दोनों अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ने मैं कैसे मदद मिलती है? साथ ही दोनों देशों में व्यवसायों को इससे क्या लाभ होता है. ये ऐसे कुछ सवाल हैं जो अक्सर एफटीए नाम सुनते ही अक्सर जहन में आते हैं.
क्या होता है फ्री ट्रेड एग्रीमेंट
मुक्त व्यापार संधि के तहत दो देशों के बीच होने वाले व्यापार को और सरल बना दिया जाता है. आयात या निर्यात होने वाले उत्पादों और सेवाओं पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा को या तो बहुत घटा दिया जाता है या पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है. ये सरकारों की व्यापार संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) की पॉलिसी के बिलकुल उलट होता है.
क्या ट्रेड हो जाता है बिलकुल मुक्त?
वृहद स्तर पर देखा जाए तो हां ये सही है कि एफटीए समझौता होने के बाद दो देशों के बीच व्यापार लगभग पूरी तरह मुक्त हो जाता है. हालांकि, तब भी सरकारें कुछ उत्पादों और सेवाओं को अपने नियंत्रण में रख सकती है. मसलन, किसी देश द्वारा दूसरे देश एफटीए समझौता किया गया लेकिन एक देश की सरकार ने किसी खास दवा के आयात को इस समझौते से बाहर कर दिया क्योंकि वहां उस दवा को नियामकीय मंजूरी प्राप्त नहीं थी. इसी तरह प्रोसेस्ड फूड को भी एग्रीमेंट से बाहर रखा जाता है क्योंकि वह उस देश के फूड क्वालिटी स्टैंडर्ड्स पर खरा नहीं उतर रहा है.