दुनिया कितनी मतलबी और स्वार्थी हो गई है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना काल में पूरी दुनिया में 10 लाख से अधिक लोगों की मौत केवल वैक्सीन की जमाखोरी की वजह से हुई है. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना काल के दौरान अधिक से अधिक वैक्सीन अपने पास रखने की देशों के लालच की वजह से करीब 13 लाख लोगों की अनावश्यक मौत हुई है, जबकि अमीर देशों ने बाद में बचे हुए वैक्सीन को बर्बाद ही किया या फिर वे एक्स्पायर हो गए. रिपोर्ट में कहा गया है अगर अमीर देश वैक्सीन की दूसरे देशों के साथ शेयरिंग पर ध्यान देते तो इन मौतों का आंकड़ा कम हो सकता था और कोरोना के नए वैरिएंट भी नहीं पनपते.
जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशति नए शोध में इस बात का दावा किया गया है कि कोरोना वैक्सीन के मामले में कुछ देशों ने इंसान की जिंदगी से अधिक अपने फायदे को तवज्जो दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया में 1.3 मिलियन (करीब 13 लाख) लोग अनावश्यक रूप से काल की गाल में समा गए, वहीं 300 मिलियन यानी 30 करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए. शोध में दावा किया गया है कि अमीर देशों ने कोरोना वैक्सीन की जमाखोरी की, इतना ही नहीं, उसे बर्बाद होने दिया और पूरी दुनिया में कोरोना का तांडव मचने दिया और इस तरह रोकी जाने वाली मौतों को होने दिया. इतना ही नहीं, कोरोना काल को लंबा करने और उसके सब वैरिएंट के फैलने में भी अपने फायदे के लिए अमीर देशों का योगदान है.
152 विभिन्न देशों के गणितीय मॉडल क्रंचिंग डेटा का उपयोग करते हुए यूके के कोवेंट्री में वारविक विश्वविद्यालय के महामारी विज्ञानियों ने महामारी की शुरुआत से 2021 के अंत तक कोरोना वैक्सीन वितरण में अंतर को रेखांकित किया है. एक्सपर्ट की टीम ने अपने शोध में पाया कि वैक्सीन के वितरण में काफी भिन्नता थी. कुछ देशों के 90 फीसदी से अधिक वयस्कों ने वैक्सीन ले लिया था, जबकि कुछ देश में महज 0.9 फीसदी लोगों को ही टीका लग पाया था. यहां इसके पीछे सारा खेल पैसे और गरीब-अमीर देशों के बीच के फर्क का था.
शोध में कहा गया है कि कोरोना वैक्सीन के वितरण में जरूरत से अधिक धन को तरजीह दी गई. स्टडी के लीड ऑथर सैम मूरे और उनके सहयोगियों ने कहा कि हमने पाया कि अधिक वैक्सीन शेयर करने से बीमारी का कुल वैश्विक बोझ कम हो सकता था. हमने शोध में यह स्पष्ट तौर पर पाया कि भविष्य में आवश्यकता के बजाय धन के अनुपात में वैक्सीन का वितरण सभी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. इस तरह के वितरण के न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर भी गंभीर परिणाम पड़ते हैं.