भारतीय बाज़ार किस तरफ जाएंगे ये बड़ा सवाल है. घरेलू और रिटेल निवेशक बाज़ार में एक गिरावट का इंतजार भी कर रहे हैं. हालांकि, मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स में काफी खरीदारी देखने को मिल रही है. ब्लूचिप की बजाए निवेशक अगस्त में मिडकैप और स्मॉलकैप में जमकर कर रहे हैं. हफ्ते की शुरूआत से ही बाज़ार में मजबूती नजर आ रही है.
अमेरिका समेत यूरोपीय देशों की मॉनटरी पॉलिसी पर अभी कोई राहत की उम्मीद नहीं है लेकिन भारतीय कंपनियों की मैनेजमेंट कमेंट्री और त्योहारों में रूरल डिमांड एक तरह से ट्रिगर प्वाइंट की तरह काम कर सकती है. भारतीय कंपनियों की आने वाले तिमाही नतीजे भी अच्छे रहे सकते हैं हालांकि कमोडिटी प्राइस की वजह से कुछ कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ सकता है लेकिन अच्छे मॉनसून के बाद त्योहारी सीजन से कई कंपनियों को अच्छी डिमांड की उम्मीद है जिससे भारतीय बाज़ार में रौनक रह सकती है. जानकारों का कहना है कि रिटेल निवेशक अपना कैश रखें और जैसे ही बाज़ार में खरीदने के मौके मिले तो वो मौका हाथ से जाने ना दें.
विदेशी निवेशकों का रूख
भारतीय बाज़ारों में जो रौनक लौटी है उसका एक बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशक है. करीब-करीब एक साल के सूखे के बाद विदेशी निवेशक भारतीय बाज़ारो की तरफ लौटे हैं. अकेले अगस्त महीने में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय बाज़ारों में करीब 51 हजार रूपये की इक्विटी खरीदी है. डॉलर इंडेक्स और यूएस बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के बावजूद विदेशी खरीददारों को लगता है कि भारतीय बाज़ारों के वैल्युएशन अभी ठीक है. लेकिन इस पूरे खेल में जीत का सेहरा घरेलू निवेशकों के सिर ही बंधा है. क्योंकि विदेशी खरीदारों की वजह से घरेलू निवेशकों को पिछले 10 महीनों में प्रॉफिट बुक करने का मौका मिला है. साथ ही तीसरी महाशक्ति यानि रिटेल निवेशकों को भी निकलने का मौका मिला है. हालांकि अब विदेशी निवेशकों को भारतीय इक्विटी महंगी मिल रही है. क्योंकि जब विदेशी निवेशक अपना माल बेच रहे थे तो घरेलू फंड मैनेजर जोरदार तरीके से खरीद रहे थे. अब ये बात साफ है कि भारतीय बाज़ारों में शेयर बेचना आसान है लेकिन खरीदना मुश्किल है.
भारतीय अर्थव्यवस्था का हाल
भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकडों के बाद विदेशी निवेशकों का भरोसा इस बात पर बढ़ेगा कि कोविड के बाद जिस तेजी से भारतीय इकोनॉमी में रिकवरी हुई है वो दुनिया की बाकी इमरर्जिंग इकोनॉमी में नहीं हुई है. भारत ने दुनिया की बड़ी इकोनॉमी की लिस्ट में अब ब्रिटेन को पीछे छोड दिया है. भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है. अमेरिका और यूरोपीय देश बेरोजगारी से जूझ रहे हैं ऐसे में इमरर्जिंग मार्केट के तौर पर भारत एक ऐसी मार्केट के रूप में उभरा है जो अल्पकालीन झटके को सहन करने में ज्यादा सक्षम है. जेरोमी पॉवेल के बाद अब सबकी निगाहें यूरोपीय सेंट्रल बैंक पर होगी. इस बात की पूरी संभावना है कि यूरोपीय सेंट्रल बैंक 8 सितंबर को ब्याज दरों में बढोतरी का ऐलान कर सकता है.