भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का अगले 2 वर्षों में खुदरा मुद्रास्फीति के 4 प्रतिशत तक गिरने का आकलन सटीक लगता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में कीमतों का दबाव (Price Rressures) अपने चरम पर है. यह मानना है जाने-माने अर्थशास्त्रियों का. उन्होंने गुरुवार, 25 अगस्त को मनीकंट्रोल से बातचीत करके हुए ऐसा कहा.
एचडीएफसी बैंक की सीनियर इकॉनोमिस्ट साक्षी गुप्ता ने कहा, “मुद्रास्फीति 2024 तक 4 फीसदी तक आ सकती है, क्योंकि वैश्विक विकास में सुस्ती और आपूर्ति में ढील से इनपुट लागत में कमी आई है… इसके अलावा, माना जा रहा है कि अगले दो वर्षों के लिए मानसून सामान्य रहेगा. भारत में मांग कम होने का असर भी दिखेगा और सप्लाई में तेजी आएगी, जिससे मुद्रास्फीति भी स्थिर होगी.”
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने 22 अगस्त को ईटी नाउ चैनल के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि मुद्रास्फीति को 4 फीसदी तक लाने के लिए 2 साल की समयसीमा निर्धारित की गई है. उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति चरम पर है और इसके धीमे होने की उम्मीद है.
साक्षी गुप्ता आरबीआई के इस आकलन से सहमत हैं कि भारत में मुद्रास्फीति चरम पर है. उन्होंने कहा, लेकिन यदि खाद्य मुद्रास्फीति काफी कम हो जाती है और तेल की कीमतें जाती हैं तो वैश्विक स्तर पर मंदी का खतरा भी बन सकता है.
किस तरफ जा रही है महंगाई?
12 अगस्त को जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई भारत की प्रमुख खुदरा मुद्रास्फीति दर जुलाई में पांच महीने के निचले स्तर 6.71 प्रतिशत पर आ गई. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद अप्रैल में मुद्रास्फीति 8 साल के उच्च स्तर 7.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. मुद्रास्फीति ने लगातार 34 महीनों के लिए आरबीआई के 4 प्रतिशत के मध्यम अवधि के लक्ष्य से ऊपर और केंद्रीय बैंक की 2-6 प्रतिशत टोलरेंस रेंज के बाहर पूरे सात महीनों में तांडव किया है.
केंद्रीय बैंक इन्फ्लेशन मेंडेट को पूरा करने में विफल रहा है. अब केवल 2 महीने बाकी हैं, जब बैंक को जल्द ही सरकार को अपनी प्रतिक्रिया का मसौदा तैयार करने देना होगा. इस मसौदे को पूरा करने में सामने आई विफलताओं के कारणों के बारे में बताया जाएगा और उन चीजों का भी जिक्र होगा कि महंगाई को लिमिट में लाने के लिए क्या-क्या तरीके हैं.