महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आज राष्ट्रपति के रूप में देश के नाम अपना आखिरी संबोधन दे रहे हैं. आज उनके कार्यकाल का आखिरी दिन है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज मेरे कार्यकाल का आखिरी दिन है. अपने कार्यकाल के दौरान मुझे समाज के सभी वर्गों से समर्थन मिला है. उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि इसमें हर नागरिक अपनी निष्ठा को प्रकट कर सकता है. उन्होंने कहा, जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था की शक्ति को मेरा शत-शत नमन है.
उन्होंने कहा, अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता है. मैं युवा पीढ़ी से यह अनुरोध करूंगा कि अपने गाँव या नगर तथा अपने विद्यालयों तथा शिक्षकों से जुड़े रहने की इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहें. उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान पूरे देश में पराधीनता के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए. देशवासियों में नयी आशा का संचार करने वाले ऐसे विद्रोहों के अधिकांश नायकों के नाम भुला दिए गए थे. अब उनकी वीर-गाथाओं को आदर सहित याद किया जा रहा है.
राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया
उन्होंने कहा, तिलक और गोखले से लेकर भगत सिंह और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तक; जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुकर्जी से लेकर सरोजिनी नायडू और कमलादेवी चट्टोपाध्याय तक – ऐसी अनेक विभूतियों का केवल एक ही लक्ष्य के लिए तत्पर होना, मानवता के इतिहास में अन्यत्र नहीं देखा गया है. संविधान सभा में पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक महानुभावों में हंसाबेन मेहता, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर तथा सुचेता कृपलानी सहित 15 महिलाएं भी शामिल थीं. संविधान सभा के सदस्यों के अमूल्य योगदान से निर्मित भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ रहा है.