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देश में गेहूं की पैदावार 20 साल के न्यूनतम स्तर पर, क्या होगा आने वाले समय में इसका असर?

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भारत में गेहूं उत्पादन का आधिकारिक आंकड़ा जारी हो गया है. भीषण गर्मी के कारण भारत में 20 साल से भी अधिक समय में सबसे कम गेहूं उत्पादन हुआ है. गेहूं की सर्वाधिक उपज वाले राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी इस बार पैदावार अच्छी नहीं हुई है. तेज धूप ने गेहूं की फसलों को झुलसा दिया है.

गेहूं की फसलें धूप के कारण भूरे रंग की हो गई है. एचटी की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के एक जिले में गेहूं के किसान ने बताया कि उसकी फसल सुनहरे पीले रंग के बाद भूरे रंग में बदल गई. बता दें कि यह भीषण गर्मी में फसलों और दानों के सिकुड़ने का संकेत है.

क्या होगा इसका असर

गेहूं की पैदावार से संबंधित आंकड़े वैज्ञानिकों ने क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट के आधार पर जारी किए हैं. इस पद्धति से वैज्ञानिकों को पैदावार निर्धारित करने व फसल के नुकसान का आकलन करने में मदद मिलती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके दीर्घकालिक असर देखने को मिल सकते हैं. जिन इलाकों में गेहूं का उत्पादन अधिक है वह भौगोलिक रूप से प्रभावित हो सकते हैं. इसके अलावा आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो इसका असर आम लोगों के बजट पर भी पड़ सकता है. कम पैदावार होने का मतलब है कि बाजार में गेहूं किल्लत और दामों में वृद्धि. इसका असर किसानों पर भी पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि उन्हें 12-18 हजार रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हुआ है और वे कर्ज में दब गए हैं. उनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई है.

गिरावट आगे और होगी

2016 में एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 2.5 से 4.9 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार 41-52 फीसदी तक घट सकती है. ओस्लो में सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट रिसर्च में पदस्थापित एएस दलोज के नेतृत्व में जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड रिसर्च में क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च प्रकाशित हुई है. इसके अनुसार भारत में गंगा के मैदानों में बढ़ती गर्मी का असर दिखेगा. गौरतलब है कि यह वह इलाका है जो दुनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादन क्षेत्रों में से एक है.

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