केंद्र सरकार ने 2019 में लागू राज्य और केंद्रीय करों व लेवी से छूट (आरओएससीटीएल) योजना में बदलाव करते हुए इसे 2024 तक बढ़ा दिया है. वैसे तो यह योजना घेरलू कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने और वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए लाई गई थी, लेकिन भारतीय कपड़ा निर्यातकों का कहना है कि अब योजना उनके गले की फांस बन गई है.
अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के सदस्य और गारमेंट एक्सपोर्ट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय जिंदल ने कहा कि योजना में बदलाव से कपड़ा निर्यातकों के सामने कई कठिनाइयां खड़ी हो गई हैं. इससे देश के कपड़ा उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धा और लगभग 30 लाख लोगों के रोजगार पर असर पड़ सकता है. भारत अभी करीब 16 अरब डॉलर के परिधान एवं वस्त्र का निर्यात करता है. लेकिन, आरओएससीटीएल योजना में हुए बदलाव का लाभ निर्यातकों के बजाए विदेशी आयातकों को ज्यादा मिल रहा है.
कहां हो रही गड़बड़ी
विजय जिंदल ने कहा, यह योजना निर्यातकों द्वारा इनपुट पर पहले से भुगतान किए गए करों, लेवी आदि से छूट प्रदान करती है, लेकिन इस छूट को उन स्क्रिप में बदल दिया गया जो व्यापार योग्य हैं. निर्यातक अपने आयातकों को यह स्क्रिप बेच सकते हैं. आयातक बदले में नकद आयात शुल्क भुगतान के विकल्प के रूप में इन खरीदी गई स्क्रिपों से शुल्क का भुगतान कर सकते हैं. इनकी बिक्री पहले भी डिस्काउंट पर होती थी, लेकिन अब यह डिस्काउंट 3 से बढ़कर 20 फीसदी हो गया है.
आयातक उठा रहे अनुचित लाभ
स्क्रिप पर इस डिस्काउंट से आयातक, निर्यातकों की कीमत पर अनुचित लाभ उठा रहे हैं. कुल 16 अरब डॉलर के कपड़ा निर्यात में 5 फीसदी रीइंबर्समेंट होता है जो लगभग 6,000 करोड़ रुपये बनता है. व्यापक स्तर पर इस पर 20 फीसदी का डिस्काउंट चल रहा है, जिससे परिधान क्षेत्र के कमजोर मार्जिन पर लगभग 1,500 करोड़ रुपये का सीधा असर पड़ रहा है. जिंदल ने कहा कि अगर सरकार इस संरचना में तुरंत बदलाव नहीं करती है तो उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धा की बढ़त खो सकता है.