वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि सरकार के विनिवेश कार्यक्रम के पीछे का सिद्धांत किसी सार्वजनिक इकाई या कंपनी को बंद करना न होकर उसे अधिक सक्षम बनाना और पेशेवर ढंग से संचालित करना है. सीतारमण ने वर्ष 1994 और 2004 के बीच निजी हाथों में सौंपे गए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का हवाला देते हुए कहा कि अब इन उपक्रमों का कामकाज पेशेवर ढंग से संचालित बोर्ड संभालते हैं और उनके प्रदर्शन में सिर्फ सुधार ही देखा गया है.
वित्त मंत्री ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत आयोजित निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के समारोह में कहा कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसई) के निजीकरण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये कंपनियां कुशलतापूर्वक और लागत-प्रभावी ढंग से चल रही हैं.
अर्थव्यस्था में अधिक योगदान बढ़ाने की मंशा
निर्मला सीतारमण ने कहा, “जिस सिद्धांत के साथ अभी विनिवेश प्रक्रिया संचालित हो रही है वह एक इकाई को बंद करने वाली नहीं है. अर्थव्यवस्था को ऐसी कई अन्य कंपनियों की जरूरत है. लिहाजा, अगर हम वह काम पेशेवर ढंग से करना चाहते हैं और लोगों के लिए जगह को खोलना चाहते हैं तो हमारी रुचि इसे बंद करने में नहीं है. हम चाहते हैं कि वे अधिक कुशलता से चलें ताकि अर्थव्यवस्था में योगदान दिया जा सकता है.” उन्होंने कहा कि विनिवेश का सिद्धांत यह सुनिश्चित करना है कि जिन कंपनियों का निजीकरण किया जा रहा है वे उन लोगों के हाथों में हों जो इसे चला सकते हैं, अधिक पूंजी ला सकते हैं और वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं.
6 से अधिक कंपनियां विनिवेश की सूची में
सरकार ने रणनीतिक बिक्री के लिए आधे दर्जन से अधिक सार्वजनिक कंपनियों की सूची बनाई हुई है. इनमें शिपिंग कॉर्प, कॉनकॉर, विजाग स्टील, आईडीबीआई बैंक, एनएमडीसी का नगरनार स्टील प्लांट और एचएलएल लाइफकेयर शामिल हैं. चालू वित्त वर्ष में अब तक सरकार विनिवेश से 24,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटा चुकी है. पूरे वित्त वर्ष के लिए 65,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया है. पिछले वित्त वर्ष में केंद्रीय उपक्रमों में विनिवेश के जरिये 13,500 करोड़ रुपये से अधिक की प्राप्ति हुई थी जिसमें एयर इंडिया के निजीकरण से मिली राशि भी शामिल है.