ओमीक्रॉन संबंधी प्रतिबंध भारत की आर्थिक रिकवरी में एक बार फिर अवरोध बनकर सामने आए हैं. रॉयटर्स के एक पोल में यह बात सामने आई है कि जनवरी-मार्च तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 4 फीसदी की दर से वृद्धि की है. जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 5.4 फीसदी थी.
रॉयटर्स के अनुसार, ये लगातार तीसरी तिमाही है जब भारत की वृद्धि दर कमजोर रही है. मनीकंट्रोलमें छपे एक लेख के अनुसार, बार्कलेस के चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट राहुल बजोरिया ने कहा है कि ओमीक्रॉन के कारण कोविड-19 के केस बढ़ने से कई राज्यों ने विभिन्न तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे. उन्होंने कहा कि भले ही यात्रा प्रतिबंध बहुत कम समय रहे लेकिन वैश्विक आपूर्ति में कमी और ऊंचे लागत मूल्य के कारण वृद्धि को धक्का लगा.
पिछले साल के उच्च स्तर के कारण दिखेगी गिरावट
कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वृद्धि में कमी इसलिए भी दिख सकती हैं क्योंकि 1 साल पहले का बेस स्तर अधिक था. गौरतलब है कि सरकार हर तिमाही में आधिकारिक रूप से जीडीपी डेटा रिलीज नहीं करती है. पिछले वित्त वर्ष की शुरुआती तीन तिमाहियों में जीडीपी विकास दर क्रमश: 20.3 फीसदी, 8.5 फीसदी और 5.4 फीसदी रही. रॉयटर्स के एक अन्य सर्वे में वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की जीडीपी विकास दर 8.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था. यह भारत सरकार द्वारा 28 फरवरी को जारी दूसरे एडवांस एस्टिमेट 8.9 फीसदी से कम था.
रिजर्व बैंक ने बदली अपनी चाल
मुद्रास्फीति से ऊपर विकास पर जोर दे आरबीआई ने हाल ही अपनी चाल में परिवर्तन करते हुए रेपो रेट में वृद्धि कर दी. इसके अलावा आरबीआई रेट में अभी और बढ़ोतरी कर सकता है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मुद्रास्फीति और ऊंची ब्याज दर उपभोक्ताओं द्वारा किया जा रहा खर्च घटा देगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा क्योंकि भारत एक खपत संचालित अर्थव्यवस्था है. एएनजी के अर्थशास्त्री धीरज निम ने कहा, “आरबीआई इस बात को उजागर करना जारी रखेगा कि कुल रिकवरी अच्छी रही है, लेकिन कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी और नरम वैश्विक विकास से जोखिम बना हुआ है.” उनका कहना है कि ऊंची मुद्रास्फीति के कारण ब्याज दर ऊंची कर देना अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक साबित होगा.