केंद्रीय वाणिज्य मंत्री (Commerce minister) पीयूष गोयल ने 15 अप्रैल, 2022 को एक ट्वीट में कहा था कि भारतीय किसान दुनिया का पेट भर रहा है. मिस्र ने भारत से गेहूं के इम्पोर्ट को मंजूरी दी है. दुनिया में बढ़ती मांग को देखते हुए वित्त वर्ष 2022-23 में गेहूं का निर्यात 100 लाख (10 मिलियन) टन पार कर जाएगा.
हालांकि, अब घरेलू मोर्चे पर हालात बदल गए हैं. बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक कीमत में गेहूं की खरीद और पैदावार में कमी के कारण सरकारी खरीद प्रभावित हुई है. अब स्थिति यह है कि सरकार जून से गेहूं के निर्यात पर एक सीमा लागू कर सकती है. मनीकंट्रोल को सरकारी अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक, कई प्रमुख राज्यों में सरकारी खरीद की सुस्त प्रतिक्रिया के कारण गेहूं निर्यात पर बंदिशें लगाईं जा सकती हैं.
दरअसल, इन दिनों बाजार में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर बिक रहा है. साथ ही, असामान्य गर्मी से पैदावार में कमी आई है. इनका असर सरकारी खरीद पर पड़ा है. खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि दुनिया में गेहूं के दाम लगातार बढ़ने के कारण किसान अपनी फसल सरकार को नहीं बेचना चाहते हैं. इससे मौजूदा सीजन में कुल गेहूं खरीद का लक्ष्य घटकर 1.95 करोड़ टन रह गया है.
सरकार यदि गेहूं निर्यात पर बंदिशें लगातीं हैं, तो इसका बिक्री मूल्य तत्काल गिर जाएगा. इससे किसान एक बार फिर सरकारी खरीद की ओर रुख करने पर मजबूर हो जाएंगे. ऐसी आशंका में किसान मौजूदा बाजार व्यवस्था में तेजी से अपनी फसल बेचने की कोशिश कर रहे हैं. घरेलू बाजार में सप्लाई अधिक होने से कीमत कम होनी चाहिए थी, लेकिन निर्यातकों की अधिक खरीद के कारण गेहूं के दाम और बढ़ गए. इसका असर, आम लोगों की थाली पर दिख रहा है.
निर्यात घटने से असर पड़ेगा
अगर सरकार गेहूं निर्यात का लक्ष्य घटाती है, तो उसकी यूक्रेन और रूस के गेहूं खरीदारों को लुभाने की योजना और दीर्घकालीक कॉन्ट्रैक्ट करने की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है. सरकार ने 2022-23 में 1 करोड़ टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा है. इससे पहले, 2021-22 में भारत ने करीब 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था. सूत्र बताते हैं कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद भारत दो महीने में करीब 1.4 अरब डॉलर के गेहूं का निर्यात कर चुका है.