केंद्र सरकार ने पॉल्ट्री फार्मिंग को समर्थन देने के लिए 5.5 लाख टन जेनेटिकली मोडीफाइड सोयामील के आयात को अनुमति दे दी है. गौरतलब है कि पॉल्ट्री उद्योग लगातार सोयामील की कमी से जूझ रहा है और पिछले साल भी उद्योग से जुड़े लोगों ने इसे आयात करने की मांग उठाई थी.
सरकार ने तब अगस्त में आयात नियमों को ढीला किया था और 12 लाख टन की पहली खेप भारत पहुंची थी. इस बार 30 सितंबर से पहले इस खेप को भारत में आयात करने का आदेश है
पिछले साल बच गई थी खेप
दरअसल सरकार ने 2021 के अगस्त में 12 लाख टन जीएम सोयामील के आयात को अनुमति दी थी. लेकिन व्यापारी केवल 6.5 लाख टन सोयामील के आयात का सौदा कर पाए थे. इसलिए इस बार सरकार ने बची हुए 5.5 लाख टन के आयात को अनुमति दी है.
आयात के फैसले का विरोध
सरकार के इस फैसले का सोपा (सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन) ने विरोध किया है. उनका कहना है कि जब सरकार में किसी और जेनेटिकली मोडीफाइड उत्पाद की खेती नहीं करने देती तो उसे बाहर से भी इसके आयात की अनुमति नहीं देनी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि इसका असर भारतीय किसानों पर पड़ेगा क्योंकि उन्हें उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाएगा. सोपा के एक अधिकारी ने कहा है कि भारत के पास सोयामील का पर्याप्त भंडार है और इसका अक्टूबर में शुरु होने वाली सोयाबीन की फसल की पिराई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. सोपा की ओर से केंद्र सरकार को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि इस आयात को अनुमति देने का कोई तर्क नहीं है.
क्या होता सोयामील
सोयामील, सोयाबीन के बीजों से तैयार होता है. इसका इस्तेमाल पॉल्ट्री फार्मिंग में आहार के रूप किया जाता है. संक्षेप में कहें तो यह मुर्गियों का खाना होता है. इसे सोयाबीन की खली या डी-ऑयल सोया केक भी कहा जाता है. अगर इसके दाम घटते हैं तो भारत में चिकन की कीमतों पर भी असर पड़ेगा. भारत में महाराष्ट्र सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादकों में शामिल है. इसके आयात के फैसले पर पिछले साल भी वहां विरोध देखने को मिला था.