चीन के पास एस-400 प्रणाली होने के मद्देनजर वायुसेना के अधिकारी ने संसद की स्थायी समिति को बताया है कि दुश्मन के शक्तिशाली हथियार का मुकाबला भारत की ‘‘प्रत्यक्ष रणनीतिक योजना’’ पर आधारित होगी. उल्लेखनीय है कि भारत रूस से एस-400 प्रणाली की खरीद की प्रक्रिया में है.
वायुसेना के प्रतिनिधि ने रक्षा मामलों पर संसद की स्थायी समिति से कहा कि जहां तक एस 400 का संदर्भ है तो आप सही हैं कि यह उनके पास है लेकिन अंतत: यह उनके लिए शक्तिशाली हथियार होगा जबकि हमारी रणनीति होगी कि कैसे उनका मुकाबला करें.
हमारे पास बेहतर सटीक हथियार हैं
सैन्य अधिकारी ने कहा मुमकिन है कि हमारे पास बेहतर सटीक हथियार हैं. जैसा उनके पास है. यह प्रत्यक्ष रणनीतिक योजना होगी. वायुसेना के प्रतिनिधि की यह टिप्पणी समिति की 27 वीं रिपोर्ट में है जिसे बुधवार को लोकसभा में पेश किया गया. गौरतलब है कि इस समय पर भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं में कभी-कभार तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है जिसको लेकर देश की नीतिगत स्तर पर अपनी चिंताए हैं.
गौरतलब है कि इस समय पर भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं में कभी-कभार तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है जिसको लेकर देश की नीतिगत स्तर पर अपनी चिंताए हैं. पिछले हफ्ते भी 13 घंटे की मैराथन बैठक के बाद भारत और चीन एलएसी के बाकी बचे विवादित इलाकों के समाधान के लिए कोई ठोस फैसला नहीं ले पाए थे.
एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए आगे भी हो मीटिंग
लेकिन बैठक में इस बात पर जरूर राजी हो गए कि एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए आगे भी इस तरह की सैन्य और राजनयिक स्तर की मीटिंग होती रहनी चाहिए. आपको बता दें कि शनिवार को भारत और चीन ने साझा बयान जारी कर कहा कि 11 मार्च को 15वें दौर की कोर कमांडर स्तर की जो मीटिंग हुई. उसमें पिछली मीटिंग पर जो बातचीत हुई थी उसे आगे बढ़ाया गया है.
इस दौरान दोनों पक्षों ने अपने-अपने देश के शीर्ष-नेतृत्व द्वारा दिए गए मार्ग-दर्शन के अनुसार विस्तृत विचारों का आदान-प्रदान किया था. इस बातचीत में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC)के बाकी मुद्दों के जल्द से जल्द समाधान के लिए काम करना भी शामिल था.
भारत के रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया कि मीटिंग के बाद दोनों ही देश इस बात के लिए राजी हो गए हैं कि विवाद सुलझने से एलएसी के पश्चिमी क्षेत्र (पूर्वी लद्दाख) में शांति बहाली में मदद मिलेगी और दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध मजूबत होंगे. इससे एलएसी पर जमीनी-स्तर पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच स्थिरता भी कायम होगी.