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चीन के साथ रिश्ते नाजुक दौर में, सीमा के हालात से ही तय होंगे संबंध: जयशंकर

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भारत ने एक बार फिर वैश्विक मंच से चीन को खरी खरी सुनाई है. भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस (Munich Security Conference) में साफ-साफ कहा कि चीन के साथ भारत के रिश्ते इस वक्त बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं और इसकी वजह चीन का सीमा समझौतों का उल्लंघन करना है. जयशंकर ने दोटूक कहा कि बॉर्डर की स्थिति से ही दोनों देशों के रिश्ते निर्धारित होंगे.

जयशंकर ने सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में पैनल डिस्कशन के दौरान कहा कि भारत को चीन से एक समस्या है. समस्या ये कि 45 वर्षों तक भारत-चीन सीमा पर शांति थी. 1975 के बाद वहां किसी सैनिक की जान नहीं गई थी. यह सब इसलिए था कि हमारे बीच सैन्य समझौते थे. लेकिन चीन ने उन समझौतों का उल्लंघन किया. जयशंकर ने कहा कि सीमा पर जैसी स्थिति होगी, दोनों के बीच वैसे ही संबंध होंगे, यह स्वाभाविक है. स्पष्ट है कि चीन के साथ संबंध इस वक्त बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं.

विदेश मंत्री जयशंकर लद्दाख सीमा (ladakh border) पर चीन के साथ हुए टकराव का जिक्र कर रहे थे. चीन ने पुराने समझौतों को दरकिनार करके वहां भारत के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था. भारत ने भी इसका समुचित जवाब दिया. दोनों देशों के लाखों सैनिक सीमा पर जम गए. यह तनाव 15 जून 2020 को उस वक्त चरम पर पहुंच गया, जब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हो गया. उसी के बाद से भारत और चीन के रिश्ते पटरी पर नहीं आ सके हैं. दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों और राजनयिक स्तर पर लगातार बातचीत होती रही है, लेकिन इनमें बनी सहमतियों का चीन पालन नहीं कर रहा है. इसी को लेकर रिश्तों में खटास है.

म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने हिंद-प्रशांत पर एक पैनल डिस्कशन में भी हिस्सा लिया, जिसका उद्देश्य यूक्रेन को लेकर नाटो देशों और रूस के बीच बढ़ते तनाव पर व्यापक विचार-विमर्श करना था. हिंद-प्रशांत के हालात को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इंडो-पैसिफिक और ट्रान्स अटलांटिक में स्थितियां वास्तव में समान हैं. यह अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा कि प्रशांत क्षेत्र में अगर कोई देश कुछ कार्रवाई करता है तो बदले में आप भी वही करेंगे. मुझे नहीं लगता कि अंतरराष्ट्रीय संबंध इस तरह से काम करते हैं. अगर ऐसा होता तो बहुत सी यूरोपीय ताकतें हिंद-प्रशांत में आक्रामक रुख अपना चुकी होतीं, लेकिन 2009 के बाद से ऐसा नहीं हुआ है.

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