पिछले कुछ वर्षो से इलेट्रानिक मीडिया में वादविवाद चलवाकर बहुत से एजेंडे वसूली की आड़ में चलाये जा रहे है, ये वसूली भावनाओ की है, ये वसूली अपेक्षाओं की है और ये वसूली मौलिकताओं से है। आम जन मानस को एक सोची समझी साजिश के तहत पूर्वाग्रह के उस जंजाल में फंसाया जा रहा है जहाँ से वो इतना दिग्भ्रमित सा दिखता है जहाँ से उसे इतने सारे रास्ते दिखते तो है लेकिन सारे किस दिशा में जा रहे का बोध नहीं होता।
इस देश में अब जातिवाद इतना गंभीर मसला है कि हिन्दू गरीब की लुगाई प्रतीत सा दिखाई देता है, क्यों जन्मास्टमी और नमाज की तुलना हो ? क्यों लव जिहाद जैसे गंभीर मामले पर चर्चा न हो ? क्यों सड़क पर अराजकता सभी समाजो के लिए प्रतिबंधित हो या फिर क्यों समाज खुले रूप से सभी धर्मो के लिए सभी जगह मान्य न हो ?
देश की वर्तमान सरकार के खिलाफ षड्यंत्र हो रहे है और प्रदेश की सरकार पर भी वार हो रहे है, फारुख अब्दुल्ला हो या महबूबा मुफ़्ती या फिर कोई भी जो देश के संविधान के दायरे में आने से डरे तो फिर ऐसे लोगो को क्या समर्थन देना ?
चीन हमारे से युद्ध की धमकिया दे रहा है, देश में बाड का प्रकोप जारी है और हम इंसानियत और देश भूलकर चुनाव में कैसे गोटी बैठेगी की चर्चा और लव जेहाद में सुप्रीम कोर्ट के कार्य पर सवाल उठा रहे !!
ये समय की मांग है कि नागरिक अपना कर्तव्य समझे