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स्‍वास्‍थ्‍य बजट 2022 में इस प्रमुख क्षेत्र को भूली सरकार, विशेषज्ञ बोले, अभी कोरोना गया नहीं

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केंद्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को केंद्रीय बजट 2022 पेश किया. जिसमें उन्‍होंने सभी क्षेत्रों के लिए घोषणाएं की. इस दौरान पेश किए गए स्‍वास्‍थ्‍य बजट में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विशेष ध्‍यान दिया गया और देशभर में 23 टेलीमेंटल हेल्‍थ सेंटर खोलने का ऐलान किया. इतना ही नहीं पहले से चले आ रहे कोरोना वैक्‍सीनेशन, नई तकनीकी का उपयोग करते हुए देशवासियों के स्‍वास्‍थ्‍य का ई-डिजिटल रिकॉर्ड भी रखने के लिए सिस्‍टम तैयार करने की घोषणा की. पिछले साल के मुकाबले इस बार स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र को 16 फीसदी ज्‍यादा बजट आवंटित किया गया है. इसके बावजूद स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि इस बजट में सरकार कुछ प्रमुख क्षेत्रों को पूरी तरह भूल गई है. इनमें मेडिकल उपकरण इंडस्‍ट्री से जुड़े लोगों ने निराशा जताई है.

इस बजट को लेकर स्वास्थ्य और फार्मा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि आम बजट आत्मनिर्भर भारत की बात तो की गई है लेकिन स्वदेशी कंपनियों के लिए सरकार ने कुछ नया नहीं किया जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके. हिंदुस्तान लिवर के एमडी और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्‍ट्री के फोरम कॉर्डिनेटर राजीव नाथ कहते हैं कि जब से कोरोना आया है तब से विश्‍व में मेडिकल डिवाइस इंडस्‍ट्री काफी ऊपर पहुंच गई है लेकिन भारत में मेडिकल उपकरणों का आयात चीन, नीदरलेंड, सिंगापुर, यूएसए और जर्मनी आदि देशों से किया जाता है और यह पिछले पांच साल में और ज्‍यादा बढ़ गया है. अकेले चीन से ही पिछले पांच साल में आयात में 74 फीसदी से ज्‍यादा की बढ़ोत्‍तरी हुई है. जबकि भारतीय कंपनियां भी ये उपकरण बना सकती हैं.

राजीव नाथ कहते हैं कि भारत सरकार ने पिछले साल देश में चार बड़े मेडिकल डिवाइसेज पार्क लगाने की बात कही थी. इनमें हर एक पार्क को करीब 100 करोड़ का फंड दिया जाना था. इन पार्कों में आत्‍मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के एजेंडे को बढ़ाते हुए स्‍वदेशी कंपनियों के द्वारा इन उपकरणों की मैन्‍यूफैक्‍चरिंग की जानी थी लेकिन साल 2022-23 के इस बजट में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला जिससे ये पता चले कि सरकार मेडिकल डिवाइसेज की स्‍वदेशी इंडस्‍ट्री को बढ़ावा देना चाहती है. इतना ही नहीं कोरोना के समय में सबसे ज्‍यादा मेडिकल उपकरणों की जरूरत देखी गई है वहीं विश्‍व में भी इनकी भारी मांग है लेकिन भारत सरकार ने बजट में न तो इनके आयात को घटाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी पर कोई फैसला किया है और न ही मेक इन इंडिया को बढ़ाने के लिए कोई बजट या रूपरेखा की चर्चा की है.

नाथ कहते हैं कि जब तक आयात को नहीं घटाया और निर्यात को प्रोत्‍साहित नहीं किया जाएगा तब तक भारत में स्‍वदेशी उत्‍पादन को बल नहीं मिलेगा. ऐसे में मेक इन इंडिया का सपना भी पूरा होने में परेशानी आएगी. ध्‍यान देने वाली बात है कि अभी कोरोना गया नहीं है बल्कि विश्‍व के लगभग हर देश में मौजूद है. आने वाले समय में भी मेडिकल डिवाइसेज की जरूरत पड़ सकती है. भारत में 50 से ज्‍यादा ऐसे उपकरण हैं जिनपर जीरो आयात शुल्‍क है जो कि आयात को बढ़ावा देने का प्रमुख कारण है.

फार्मा इंडस्ट्री को स्वास्थ्य बजट से काफी उम्मीदें थीं, बजट में इस बार आत्मनिर्भर भारत के तहत देश में बनने वाले मेडिकल उपकरणों के लिए कुछ अधिक बेहतर सुविधाएं दी जानी चाहिए थीं, इसके कस्टम ड्यूटी में बदलाव किया जा सकता था, जिससे निर्यात आसान हो सकता था. कुछ प्रमुख मांगों पर ध्‍यान दिया जाना था जिनमें टैरिफ योजना में बदलाव, कस्टम ड्यूटी में बदलाव, मेडिकल उपकरणों पर 18 प्रतिशत जीएसटी घटाकर 12 प्रतिशत की जानी चाहिए थी क्योंकि मेडिकल उपकरण लक्जरी सामान की सूची में नहीं आते हैं. उपकरणों के शोध और रिसर्च कार्य पर भी छूट दी जा सकती थी जो नहीं किया गया.

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