अमेरिका के नेतृत्व में रैनसमवेयर रोधी पहल पर अब तक की पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक में भारत ने कहा कि रैनसमवेयर हमले सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के समक्ष पेश सबसे बड़ी चुनौती हैं. रैनसमवेयर एक तरह का सॉफ्टवेयर है, जिसके जरिए वसूली करने के लिए लोग, पीड़ितों के कंप्यूटर के संचालन को ‘ब्लॉक’ कर देते हैं. व्हाइट हाउस द्वारा आयोजित काउंटर रैनसमवेयर इनीशिएटिव में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राजेश पंत ने कहा कि तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण और क्रिप्टोकरेंसी ने साइबर क्षेत्र को और अधिक संवेदनशील बना दिया है.
पंत ने कहा, रैनसमवेयर, साइबर खतरे का एक विकसित रूप है और अपराधी अधिक परिष्कृत तथा चतुर होते जा रहे हैं. आगामी वैश्विक गतिशीलता ने भी इस डिजिटल स्वरूप को और खतरे में डाल दिया है. उन्होंने कहा, कोविड-19 वैश्विक महामारी ने भी इसे और बढ़ावा दिया है और डिजिटलीकरण को लेकर जल्दबाजी ने भी सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) को संवेदनशील बनाया है. इसके लिए जिम्मेदार एक और पहलू क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती लोकप्रियता भी है, जिसके लेनदेन का पता लगाना भी मुश्किल है.
आईटी महाशक्ति के रूप में पहचाने जाने वाले भारत ने इस चुनौती से निपटने को लिए हुई चर्चा का नेतृत्व करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पंत ने कहा, आज विश्व में, रैनसमवेयर हमले सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के समक्ष पेश सबसे बड़ी चुनौती हैं. उन्होंने कहा कि 2021 के अंत तक, रैनसमवेयर के हर 11 सेकंड में एक कम्पनी पर हमला करने और 20 अरब डॉलर तक का नुकसान पहुंचाने की आशंका है.
पंत ने कहा, इन बढ़ते खतरों को देखते हुए, हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे संगठन, विशेषकर राष्ट्र की महत्वपूर्ण अवसंरचनाएं सुरक्षित रहें. रैनसमवेयर रोधी पहल पर अब तक की पहली वैश्विक बैठक में भारत सहित 30 देश शरीक हुए. इस दो दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत बुधवार को हुई थी. चीन और रूस ने व्हाइट हाउस की मेजबानी में आयोजित दो दिवसीय डिजिटल बैठक में भाग नहीं लिया.