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दिल्ली हाई कोर्ट ने क्यों कहा- ‘संतुलन साधने की जरूरत, स्कूल नहीं जाने से बच्चों का ज्यादा नुकसान’

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दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने मंगलवार को कोविड-19 (Covid-19) के प्रसार की चिंताओं के मद्देनजर यहां स्कूलों के पूर्ण भौतिक रूप से फिर से खोलने के खिलाफ उस जनहित याचिका (Public ) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि इससे बच्चों के जीवन के अधिकार को खतरा होगा.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी (Acting Chief Justice Vipin Sanghi) और न्यायमूर्ति नवीन चावला (Naveen Chawla) की पीठ ने कहा कि ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जो यह दर्शाता हो कि बच्चे उच्च जोखिम के दायरे में हैं. अदालत ने कहा कि संतुलन साधने की जरूरत है और स्कूल नहीं जाने से बच्चों का ज्यादा नुकसान हो रहा है.

याचिकाकर्ता की आशंका के आधार पर नहीं कर सकते हैं सुनवाई: HC

पीठ ने वकील आनंद कुमार पांडे की याचिका खारिज करते हुए कहा कि किसी विशेषज्ञ राय की गैरमौजूदगी में सिर्फ याचिकाकर्ता की आशंका के आधार पर आवेदन पर सुनवाई नहीं की जा सकती. उन्होंने तर्क दिया कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को भौतिक रूप से स्कूल जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब उन्हें कोविडरोधी टीका नहीं लगाया गया हो.
आनंद कुमार पांडे ने याचिका में अनुरोध किया था कि जब तक स्कूल जाने वाले सभी बच्चों का शत-प्रतिशत टीकाकरण नहीं हो जाता तब तक स्कूलों को एक अप्रैल से फिर से पूरी तरह खोलने के दिल्ली सरकार के फैसले को वापस लेने का आदेश दिया जाए.

ऐसा कोई आंकड़ा नहीं, जिससे बच्चों को जोखिम हो

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा, “मुद्दा यह है कि संतुलन होना चाहिए. स्कूल नहीं जाने से बच्चों का अधिक नुकसान हो रहा है. यह कहने के लिए कोई आंकड़ा नहीं है कि बच्चों के कोविड से संक्रमित होने या उनमें कोविड के गंभीर लक्षण होने का जोखिम है.”

अदालत ने कहा, “याचिका याचिकाकर्ता की अपनी राय पर आधारित है और उसके पास उस आशंका पर विचार करने का कोई ठोस आधार नहीं है जो उसने व्यक्त की है.”

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