पेगासस (israeli spyware pegasus) कथित जासूसी मामले में पश्चिम बंगाल (West Bengal) सरकार द्वारा जांच आयोग गठित करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. NGO ग्लोबल विलेज फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिका में बंगाल सरकार के 27 जुलाई के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया कि जब सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले की सुनवाई कर रहा है तो आयोग का गठन क्यों किया गया? इसके साथ ही याचिका में कमीशन पर रोक की मांग भी की गई है. बता दें राज्य सरकार ने 27 जुलाई को नोटिफिकेशन जारी कर पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था. इस जांच आयोग में दो रिटायर्ड जज शामिल हैं, जो पश्चिम बंगाल में फोन हैकिंग, ट्रैकिंग और फोन रिकॉर्डिंग के आरोपों की जांच करेंगे.
ममता ने आयोग के गठन पर क्या कहा था?
सीएम ममता बनर्जी ने 26 जुलाई को बताया था कि उनकी सरकार ने इजराइली स्पाइवेयर पेगासस के जरिए नेताओं, अधिकारियों और पत्रकारों की जासूसी कराए जाने के आरोपों की पड़ताल के लिए दो सदस्यीय जांच आयेाग गठित किया है. मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में सोमवार को मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में पैनल गठित करने का फैसला किया गया था, जिसके सदस्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे.
बनर्जी ने कहा था, ‘हमें लगा था कि फोन हैक किए जाने की जांच के लिए केंद्र कोई जांच आयोग गठित करेगा या अदालत की निगरानी में जांच का आदेश दिया जाएगा, लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही… इसलिए हमने इस मामले की पड़ताल के लिए ‘जांच आयोग’ गठित करने का फैसला किया है.’
मुख्यमंत्री ने कहा था, ‘पेगासस के जरिए जिन लोगों का निशाना बनाया गया है, उनमें पश्चिम बंगाल के लोगों के भी नाम सामने आए हैं. केंद्र सबकी जासूसी करने की कोशिश कर रहा है. आयोग अवैध रूप से फोन हैक करने के मामले की पूरी जानकारी का पता लगाएगा.’ बता दें कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल नेताओं, सरकारी अधिकारियों और पत्रकारों की जासूसी करने के लिए किया गया था, जिसके बाद देश और दुनिया भर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. इसका असर संसद सत्र पर भी पड़ा.