अफगानिस्तान (Afghanistan) में दो दशक तक तालिबान का सामना करने के बाद धीरे-धीरे वहां से अमेरिकी सेना (US Forces) की वापसी हो रही है. शुक्रवार को अमेरिका की सेना ने बगराम एयरबेस छोड़ दिया, जो 9/11 हमलों के बाद से युद्ध का केंद्र रहा है. अमेरिका के इस कदम के बाद अब चीन की नज़र अफगानिस्तान पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की कोशिश चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाकर अमेरिका की जगह लेने की है. चीन अगर अपने मकसद में कामयाब होता है, तो भारत के लिए यह चिंता की बात होगी. क्योंकि, भारत ने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है.
डेली बिस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में चीन की नजर प्राकृतिक संसाधनों पर है. चीन इनपर कब्जा करना चाहता है. चीन करीब 62 अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड प्रॉजेक्ट का हिस्सा कहे जाने वाले सीपीईसी को अफगानिस्तान तक बढ़ाना चाहता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तानी अधिकारी इस परियोजना को अपने देश में शुरू करने पर विचार भी कर रहे हैं
पेशावर से काबुल तक रोड बनाने के लिए लोन की पेशकश
चीन इसके साथ ही पाकिस्तान का इस्तेमाल भी अफगानिस्तान के लिए कर रहा है. पेशावर से काबुल तक सड़क, रेलवे और ऊर्जा पाइपलाइन बिछाने के लिए चीन ने अपने दोस्त पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर लोन की पेशकश की है. हालांकि, इस प्रोजेक्ट पर अभी बातचीत चल रही है. काबुल और पेशावर के बीच रोड बनते ही अफगानिस्तान सीपीईसी का औपचारिक रूप से हिस्सा बन जाएगा.
पाकिस्तान भी दे रहा साथ
इस बीच पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि अफगानिस्तान की शांति के लिए पाकिस्तान और चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती और अफगानिस्तान में स्थिरता जरूरी है. उन्होंने कहा कि हम तीनों को मिलकर ये देखना होगा कि इन हालातों में साथ मिलकर हम कैसे इस काम को अंजाम दे सकते हैं. अपने साझा लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकते हैं. उन्होंने अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए राजनीतिक स्थिरता को जरूरी बताया.
अफगान सरकार को ऐसे दिख रहा फायदा
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को एक ऐसे सहयोगी की जरूरत है जो संसाधन, ताकत और क्षमता के आधार पर उनकी सरकार को सैन्य सहायता दे सके. अफगानिस्तान को उम्मीद है कि वह बीआरआई प्रॉजेक्ट के जरिए एशिया और अफ्रीका के 60 देशों के नेटवर्क के साथ जुड़ सकेगा. इससे चीन को फायदा यह होगा कि वह पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और यूरोप तक अपनी पकड़ मजबूत कर सकेगा.