उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक याचिका में कहा गया है कि जनसंख्या विस्फोट देश में अनेक समस्याओं की ‘मूल वजह’ है, लेकिन केंद्र ने इस समस्या से निपटने के लिए आज तक कोई कठोर कानून बनाने के लिए उचित कदम नहीं उठाये हैं. एक जनहित याचिका पर केंद्र के जवाब के प्रत्युत्तर (रिजॉइंडर) में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि केंद्र ने अपनी जनता पर परिवार नियोजन थोपने का तथा निश्चित संख्या में संतान रखने के लिए कोई दबाव बनाने का स्पष्ट रूप से विरोध किया है क्योंकि इससे जनसांख्यिकी विरूपण हो सकता है.
उपाध्याय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी है जिसमें देश की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए दो संतान रखने के नियम समेत कुछ कदम उठाने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया गया.
याचिका में कहा गया कि ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ संविधान की सातवीं अनुसूची (प्रविष्टि 20ए) की तृतीय सूची का हिस्सा है और इसलिए केंद्र सरकार जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम-शर्तें बना सकती है, लेकिन उसने आज तक कोई कड़ा कानून बनाने के लिए उचित कदम नहीं उठाये हैं.
वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने 10 दिसंबर, 2020 को एक लिखित उत्तर में कहा था कि केंद्र सरकार परियोजना नियोजन को थोपने के खिलाफ है तथा कोई दबाव वाली कार्रवाई नहीं करेगी. उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि जनसंख्या विस्फोट अनेक क्षेत्रों में देश की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग की दयनीय स्थिति की भी मूल वजह है.