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जानें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151 क्या है, जिसका हवाला दे तीरथ सिंह रावत ने दे दिया इस्तीफा

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महज 4 महीने के अंदर ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है. संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए तीरथ सिंह रावत ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. मीडिया में बयान जारी कर रावत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 164 और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151 की वजह से संवैधानिक संकट की स्थिति थी, जिस कारण उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. आखिरकार कैसे अनुच्छेद 164 और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151 तीरथ सिंह रावत की कुर्सी के आड़े आ गई. क्या है ये अनुच्छेद 151? आइए हम आपको इसकी पूरी डिटेल्स बताते हैं.

जनप्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए भारत निर्वाचन आयोग को आकस्मिक रिक्तियों को भरने का अधिकार देता है. इसके तहत निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों, सभी राज्‍यों की विधानसभा सीटों और विधान परिषद में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से 6 महीने के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है. बशर्तें किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्‍य का शेष कार्यकाल एक साल या उससे ज्यादा हो. इसको जानने के बाद यह समझना जरूरी है कि तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?

क्यों देना पड़ा तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा
दरअसल, उत्तराखंड की चौथी विधानसभा का गठन 21 मार्च 2017 को हुआ था यानि इस विधानसभा के कार्यकाल को खत्म होने में महज 8 महीनों का वक्त बचा हुआ है. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151ए के अनुसार किसी भी खाली विधानसभा सीट पर उपचुनाव तभी हो सकता है जब बाकी का कार्यकाल एक साल या उससे ज्यादा हो, लेकिन तीरथ सिंह रावत यहां पर चूंक गए और उपचुनाव की नौबत नहीं आई. इसीलिए तीरथ सिंह रावत को तय समय से पहले इस्तीफा देना पड़ा.

आखिरकार क्या है संविधान का अनुच्छेद 164?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में कई अनुसूचियां हैं. इस अनुच्छेद में विभिन्न राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बारे में प्रावधान हैं.

164(1) के मुताबिक मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा. वहीं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्य जहां जनजातीय (आदिवासी) आबादी भी है, वहां एक मंत्री जनजातीय समुदाय से भी होगा. वही मंत्री ओबीसी और अनुसूचित जाति से जुड़े मामलों को भी देखेगा.

164(1ए) किसी राज्य की मंत्रि परिषद में, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी. लेकिन किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी. इसको यूपी के उदाहरण से समझते हैं. राज्य में 403 विधानसभा सदस्य हैं, लिहाजा यहां की मंत्रिपरिषद में 60 से ज्यादा मंत्री नहीं हो सकते हैं.

164(2) के तहत राज्य की मंत्रिपरिषद राज्य की विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी .

164(3) किसी मंत्री के द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गये प्ररूपों के अनुसार उसको पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा .

164(4) कोई मंत्री अगर लगातार छह महीने की अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं बन पाता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा. यानी अगर कोई मुख्यमंत्री या मंत्री बनने के बाद छह महीने के अंदर सदन (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं बनता है तो उसे त्यागपत्र देना पड़ेगा.

कैसे भी चली ही जाती रावत की कुर्सी?
मीडिया में बयान जारी कर तीरथ सिंह रावत ने संविधान के अनुच्छेद 164 का हवाला दिया है. आसान भाषा में कहा जाए तो अनुच्छेद 164 की चौथी अनुसूचि में कहा गया है कि अगर कोई मुख्यमंत्री बनने के बाद 6 महीने के अंदर किसी सदन का सदस्य नहीं बनता है तो उसे पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि सदन का सदस्य बनने के लिए तीरथ सिंह रावत ने कोशिश नहीं की. बीजेपी नेता तीरथ सिंह रावत ने उपचुनाव के लिए सीट तय कर ली थी, लेकिन इसके आड़े आ गए जनप्रितिनिधित्व कानून.

तीरथ सिंह रावत अगर जुलाई में इस्तीफा अगर नहीं देते तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 164(4) के तहत 10 सितंबर 2021 से पहले हर हाल में इस्तीफा देना पड़ता

कैसे भी चली ही जाती रावत की कुर्सी?
मीडिया में बयान जारी कर तीरथ सिंह रावत ने संविधान के अनुच्छेद 164 का हवाला दिया है. आसान भाषा में कहा जाए तो अनुच्छेद 164 की चौथी अनुसूचि में कहा गया है कि अगर कोई मुख्यमंत्री बनने के बाद 6 महीने के अंदर किसी सदन का सदस्य नहीं बनता है तो उसे पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि सदन का सदस्य बनने के लिए तीरथ सिंह रावत ने कोशिश नहीं की. बीजेपी नेता तीरथ सिंह रावत ने उपचुनाव के लिए सीट तय कर ली थी, लेकिन इसके आड़े आ गए जनप्रितिनिधित्व कानून.

तीरथ सिंह रावत अगर जुलाई में इस्तीफा अगर नहीं देते तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 164(4) के तहत 10 सितंबर 2021 से पहले हर हाल में इस्तीफा देना पड़ता

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