अभी तक कोरोना बीमारी का कोई इलाज न मिलने के कारण इससे बचाव का सबसे कारगर और प्रभावी उपाय वैक्सीन है. हालांकि अभी भी यह शोध का विषय है कि वैक्सीन के बाद आखिर कितने दिनों तक खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है. कोरोना के खिलाफ भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन जबकि विदेशों में फाइजर स्पूतनिक आदि वैक्सीनें बन चुकी हैं और सभी के अलग-अलग दावे भी हैं लेकिन अब विशेषज्ञों की ओर से सामने आ रही जानकारी कह रही है कि सिर्फ वैक्सीन की दो डोज लगवाकर ही आप खुद को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख सकते.
दरअसल कोरोना वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद शरीर में
पर्याप्त एंटीबॉडी बन जाती हैं. इसका प्रभाव होता है कि जब भी शरीर कोरोना वायरस की चपेट में आता है तो ये एंटीबॉडी वायरस से मुकाबला करती हैं और व्यक्ति को हानि नहीं पहुंचने देती. हालांकि अब सामने आ रहे रिसर्च बता रहे हैं कि लंबे समय तक शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए अब वैक्सीन का बूस्टर शॉट भी लगवाना होगा.
कोरोना वैक्सीन को लेकर जुटे वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वैक्सीन कोरोना से बचाव तो कर सकती है लेकिन करीब एक साल के बाद वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी घटने लगेंगी लिहाजा इसके लिए बूस्टर डोज लेनी होगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वैक्सीन के बाद अब ये बूस्टर डोज क्या है और यह कैसे काम करती है.
एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट हेड प्रो. आरती अग्रवाल बताती हैं कि वैक्सीन की दो डोज लगवाने के बाद अब बूस्टर को लेकर काम चल रहा है. भारत बायोटेक की ओर से हाल ही में दिल्ली एम्स में बूस्टर का ट्रायल भी किया जा रहा है. यह छह महीने पहले वैक्सीन लगवा चुके लोगों को दिया जा सकता है, लिहाजा अभी परिणाम आने बाकी हैं.
क्या होता है बूस्टर या बूस्ट शॉट
डॉ. आरती अग्रवाल बताती हैं कि बूस्टर मुख्य रूप से वैक्सीन की तय एक या दो डोज के बाद एक अंतराल पर दी जाने वाली अगली डोज होती है जो हमारे शरीर में मौजूद मेमोरी सेल्स को एक्टिवेट करती है और एंटीबॉडी को फिर से वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्रदान करती है. यह वैक्सीन को अपग्रेड करता है. वैक्सीन की दोनों डोज लगने के बाद साल या दो साल के अंतराल पर बूस्टर डोज दी जाती है.
क्यों दी जाती है बूस्टर डोज
डॉ. अग्रवाल कहती हैं कि वैक्सीन की डोज में मौजूद दवा की तरह ही यह बूस्टर डोज होती है लेकिन यह ज्यादा कारगर होती है. वैज्ञानिक भी यह बात मानते हैं, यहां तक कि अभी तक की चिकित्सा पद्धति में भी यही है कि एक साथ भारी खुराक लेने के बजाय अगर छोटी-छोटी खुराक एक अंतराल पर ली जाएं तो ये ज्यादा फायदेमंद हैं. फिलहाल कोविशील्ड को लेकर भी यही देखा गया है और उसकी दूसरी डोज का अंतराल बढ़ाया गया है.
ऐसे समझें कि यह बिल्कुल ऐसे है जैसे खाने को एक दिन में खा लिया जाए तो तबियत बिगड़ सकती है लेकिन धीरे-धीरे कुछ समय के अंतराल पर खाया जाए तो वह शरीर को लाभ पहुंचाता है. बूस्टर भी इसी तरह काम करता है.
कितने दिन में लगवाना होगा बूस्टर डोज
डॉ. अग्रवाल कहती हैं कि हमारे यहां पर बच्चों को भी बूस्टर डोज लगते हैं. जन्म से लगने वाले टीकों में डेढ़ साल पर बूस्टर के अलावा पांच साल, 10 साल और 16 साल पर बूस्टर डोज लगते हैं. उसी तरह अब कोरोना वायरस की वैक्सीन के बाद भी बूस्टर डोज लगवाई जाएगी. हालांकि इसकी समय सीमा कम हो सकती है. संभव है कि यह साल भर बाद ही लगवा ली जाए या पांच साल के अंदर लगे.
अभी वैक्सीन को लेकर काम चल रहा है और यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि वैक्सीन लगने के कितने दिन बाद इसकी जरूरत पड़ेगी. हालांकि फिलहाल एक साल का समय उपयुक्त माना गया है.
कोरोना वैरिएंट में भी असरदार
बूस्टर को लेकर एक यह भी बात कही जा रही है कि यह रूप बदलते कोरोना को रोकने में सफल हो सकता है. कोरोना का वायरस म्यूटेट होता है. इसके अलग-अलग वैरिएंट सामने आ रहे हैं. ऐसे में बूस्टर शॉट उसी को आधार मानकर तय किया जाता है और वैज्ञानिकों द्वारा अपग्रेड किया जाता है. लिहाजा यह वैरिएंट में भी असरदार रहता है.
भारत बायोटेक कर रही ट्रायल
सोमवार को एम्स के परीक्षण केंद्र पर पांच लोगों को बूस्टर खुराक दी गई है. बूस्टर खुराक उन लोगों को दी जा रही है जिन्हें वैक्सीन की दोनों खुराक लिए छह महीने का समय पूरा हो चुका है. दरअसल आईसीएमआर के साथ मिलकर हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी ने कोवैक्सिन को तैयार किया है जिसे एक कोरोना के जिंदा विषाणुओं को असक्रिय करने के बाद बनाया है. तीन जनवरी को यह वैक्सीन आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति लेने के बाद राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बनी थी.