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प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का संग्रहण आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बना रहा वनवासी महिलाओं को

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चित्रकूट(म.प्र )18-7 : प्राचीन तीर्थ चित्रकूट की वनवासी महिलाओं के लिये प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का संग्रहण उन्हें आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनाने के साथ आत्म-विश्वास से भरपूर भी बना रहा है, इन महिलाओं के पति पेशे से मजदूर हैं, फिर भी अब उन्हें यह डर नहीं सताता कि किसी दिन दिहाड़ी न मिली, तो घर कैसे चलेगा। इन वनवासी महिलाओं में से 55 वर्षीय संतोषिया बाई ने बताया कि उनके वृद्ध पति अब मजदूरी पर नहीं जा सकते, लिहाजा जड़ी-बूटियों की कमाई से ही घर चल रहा है, चुन्नीबाई बिलकुल अकेली हैं, उनका भी भरण-पोषण जड़ी-बूटी संग्रहण से ही हो रहा है। सुशीला बाई के पति दिहाड़ी मजदूर हैं। कई बार काम न मिलने पर जड़ी-बूटी की कमाई से ही घर चलता है। विंध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच बसे चित्रकूट के जंगल में दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और कीमती वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। यहाँ का कामदगिरि पर्वत प्रदेश के समृद्ध वनों में शुमार है। इस वन में 100 से अधिक जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका आसपास रहने वाले वनवासी कई पीढ़ियों से संग्रहण कर रहे हैं। वन विभाग अब जड़ी-बूटियों के संग्रहण को बढ़ाने और उन्हें बाजार में खुद बेचने में संग्राहकों की सहायता कर रहा है। संग्राहकों में अधिकतर वनवासी महिलाएँ शामिल हैं। चित्रकूट के जंगलों में सफेद-काली मूसली, शतावर, सेमर मूसली,केव कन्द, करिहारी, केशरिया कन्द, पताल कुमण्डी, बिलारी कन्द (वन-सिंघाड़ा),बिदारी कन्द,अमलोशा, लिलगुंडी,अश्वगंधा, नागरमोथा, भृंगराज, भुई आँवला, शंखपुष्पी, इन्नीपत्री, रतनज्योति, बिधारा, चिरायता, पुनर्नवा, गुड़मार पत्री, नारी दमदरी आदि अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ पायी जाती हैं। जड़ी – बूटी के संग्रहण में चार वन ग्राम समितियाँ वनवासियों की मदद करती हैं। भीषण गर्मी को छोड़कर वर्षभर इन जड़ी-बूटियों के संग्रहण से महिलाओं को रोजगार मिलता है।

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