Home कृषि जगत धरती का अस्तित्व बचाने जंगल जरूरी : डॉ रमन सिंह

धरती का अस्तित्व बचाने जंगल जरूरी : डॉ रमन सिंह

वनों के असली संरक्षक हैं, आदिवासी - मुख्यमंत्री

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रायपुर(छ.ग.),21-3/ विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वन विभाग द्वारा आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया, कार्यशाला का उद्देश्य सतत् जीविकोपार्जन के आधार पर वनोपज के व्यापार पर केन्द्रित रहा, मुख्यमंत्री ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधको का मासिक मानदेय 12 हजार रूपए से बढ़ाकर 15 हजार रूपए करने और 10 हजार तेन्दूपत्ता फड़ मुंशियों को निःशुल्क सायकिल देने की घोषणा की है, समारोह की अध्यक्षता वन मंत्री महेश गागड़ा ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में पर्यावरण विद् और पद्मभूषण से सम्मानित चण्डी प्रसाद भट्ट, उत्तराखण्ड राज्य ग्राम्य विकास एवं पलायन नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष डॉ.एस.एस.नेगी, छत्तीसगढ़ राज्य वनौषधि बोर्ड के अध्यक्ष रामप्रताप सिंह, छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के अध्यक्ष श्रीनिवास राव मद्दी उपस्थित थे, मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर लघु वनोपज की बोनस राशि प्रदाय के पोस्टर एवं ब्रोशर का विमोचन किया। उन्होंने लघु वनोपज के प्रचार-प्रसार के लिए तैयार की गई रथ को भी रवाना किया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मुख्य अतिथि की आसंदी से कहा कि धरती के अस्तित्व को बचाने के लिए वनों का होना जरूरी है, ये वन न केवल पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से बल्कि लोगों की आजीविका के लिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। डॉ. सिंह ने कहा कि हमारे छत्तीसगढ़ में सामाजिक वानिकी संबंधी प्रयोग काफी सफल हुए हैं। हरियाली के साथ-साथ इसके आस-पास रहने वाले ग्रामीणों की आमदनी का अच्छा जरिया भी बने हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे राज्य में 44 प्रतिशत भू-भाग में जो जंगल हैं, उनके असली संरक्षक उनमें रहने वाले आदिवासी हैं, वे जंगलों को नुकसान नहीं पहुंचाते। उन्हें मालूम है कि उनका जीवन जंगल पर ही पूर्ण रूप से निर्भर है, जीवन से लेकर मरते दम तक उनका जंगल से रिश्ता होता है। उन्होंने कहा कि जंगलों में रहने वाले आदिवासी शहरी लोगों की तुलना में वनों को बेहतर तरीके से समझते हैं। साल, सागौन, आम, महुआ जैसे परम्परागत पेड़ तो उनके सामाजिक जीवन के अविभाज्य हिस्से है, मुख्यमंत्री डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में लघु वनोपजों की बहुलता है। चार-चिरौंजी, महुआ, सालबीज सहित तेन्दूपत्ता और सैकड़ों लघु वनोपज हमारे जंगलों में मौजूद हैं। सालभर कोई न कोई वनोपज जंगलों से मिलते रहते हैं। यही नहीं, बल्कि बड़ी मात्रा में वनौषधियां भी पाए जाते हैं। आदिवासी समाज के लोग अच्छी तरह से इनका इस्तेमाल भी करते आ रहे हैं, डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के हमारे जंगल बेहद खूबसूरत और सघन हैं, इन्हें देखकर तन और मन स्वस्थ हो जाता है और काम करने के लिए ऊर्जा भी मिलती है, उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में विकसित हरियाली का भी जिक्र किया। डॉ.सिंह ने बताया कि आज से चौदह साल पहले यहां केवल दो वृक्ष थे, लेकिन आज लगभग यहां 400 वृक्ष जंगल स्वरूप में यहां मौजूद हैं। इनमें 50 पेड़ आम और 52 पेड़ तो केवल बेल के हैं, उन्होंने बताया कि बेल के शरबत के उपयोग से लू से बचाव होती है। ग्राम सुराज अभियान में चिलचिलाती धूप में इसका उपयोग करता हूँ, जिसकी वजह से आज तक सनस्ट्रोक का सामना करना नहीं पड़ा है। मुख्यमंत्री निवास के पेड़-पौधों पर सैकड़ो प्रकार की चिड़िया भी रहती है, जो मन को मोह लेती हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिन मांगे पेड़ हमें जीवन भर कुछ न कुछ देते रहते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ आदिवासी समाजों में विवाह के अवसर पर पेड़ भी दहेज स्वरूप देने की परम्परा है, आमतौर पर महुआ का पेड़ उपहार में देते हैं, जो कि जीवन भर उनका काम आता है, एक पेड़ से एक हजार की सालाना आमदनी भी हो, तो दस पेड़ से 10 हजार की अतिरिक्त आमदनी उत्पन्न होती है। देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित श्री चण्डीप्रसाद भट्ट ने कहा कि पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति के कारण हमारा ध्यान वनों की ओर जा रहा है, लेकिन मुख्य बात यह है कि ये सब कैसे होगा। हमने उन कारणों पर जाना होगा, जिनकी वजह से हम लक्ष्य तक नहीं पहंुच पा रहे हैं। श्री भट्ट ने प्राकृतिक जंगलों को बचाने के साथ-साथ ग्राम वन विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में अभी भी गांवों के आस-पास लगभग 12 प्रतिशत खुला स्थान है, इनका उपयोग ग्राम वन विकसित करने पर किया जाना चाहिए। और इनकी सुरक्षा में उन लोगों को जोड़ा जाए, जिन्हें इन वनों से लाभ मिलना है, उन्होंने कहा कि ग्राम वनों से हमें बड़ी तेजी के साथ फल-फूल के रूप में रिटर्न मिलने लगेगा, उन्होंने ग्राम वनों के लिए गठित समिति में 50 प्रतिशत महिलाओं को सदस्य बनाने का सुझाव दिया।

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