केरल में 7 दिन की देरी से पहुंचने और दक्षिणी प्रायद्वीप पर हफ्तों अटके रहने के बावजूद, दक्षिण-पश्चिम मानसून ने तेजी से देश के अधिकांश हिस्सों को कवर कर लिया है. शक्तिशाली चक्रवात बिपरजॉय का प्रभाव जैसे ही खत्म हुआ, मानसून गंगा के मैदानी इलाकों में सरपट दौड़ने लगा और देरी हुए हुए समय की भरपाई कर दी. जून के आखिरी दिनों में भारी बारिश के कारण देश में कुल बारिश की कमी 10 दिन पहले के -51 प्रतिशत से घटकर लंबी अवधि के औसत (LPA) से -19 प्रतिशत हो गई है. लेकिन यह डेटा जो दिखाने में विफल रहता है वह है वर्षा की भारी कमी, जो अब भी पूर्वी क्षेत्र में बनी हुई है, जिसमें बिहार, झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं. यहां किसान अपनी खरीफ फसलों की बुआई के लिए तैयारी कर रहे हैं.
भारत का 47% क्षेत्र वर्षा से वंचित
देश भर के कुल 36 उपसंभागों में से 20 अब भी बारिश की कमी से जूझ रहे हैं. इस उप-विभागीय क्षेत्र में भारत की लगभग 47 प्रतिशत भूमि आती है जिसमें बिहार, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, गांगेय पश्चिम बंगाल, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, विदर्भ, तेलंगाना, रायलसीमा और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. बिहार जैसे महत्वपूर्ण चावल उत्पादक राज्यों में वर्षा की कमी -78 प्रतिशत तक बढ़ गई है, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में यह -50 प्रतिशत से अधिक है.
हालांकि यह अभी जून है, लेकिन स्थिति चिंता पैदा करती है, यह देखते हुए कि इन सभी 4 राज्यों में पिछले साल सामान्य से कम मानसून रहा था. एक अच्छा मानसून सिंधु.गंगा के मैदानी इलाकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जो अपनी खरीफ फसलों की सिंचाई के लिए मौसमी बारिश पर काफी निर्भर हैं. चार महीने का मौसम (जून से सितंबर) देश में वार्षिक बारिश का 70 प्रतिशत प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद कृषि द्वारा संचालित होता है.
विनाशकारी बारिश, ‘असामान्य’ मानसून पैटर्न
जहां देश का एक हिस्सा बारिश का इंतजार कर रहा है, वहीं दूसरा हिस्सा मानसून के प्रकोप का सामना कर रहा है. मानसून के अचानक बढ़ने से असम में बाढ़, हिमाचल प्रदेश में फ्लैश फ्लड और भूस्खलन, उत्तर-पश्चिम भारत में अत्यधिक बारिश हुई है. अगले कुछ दिनों में महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में भी भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया है