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क्या होता है अध्यादेश, कैसे विधेयक से अलग, क्यों अक्सर होता है इसका विरोध

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सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को फैसला दिया कि दिल्ली की सरकार जनता के जरिए चुनी हुई सरकार है. उसे अधिकार है कि वह शासन चलाने के लिए अपने तरीके से अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग करे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने तड़ातड़ आला अधिकारियों के तबादले किए लेकिन इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार तुरंत एक अध्यादेश ले आई. अब स्थिति ये है कि दिल्ली सरकार ने जितने भी तबादले किये थे, उन सबको दिल्ली के उप राज्यपाल ने रद्द करते हुए पुरानी स्थिति बहाल कर दी है.

केंद्र सरकार के इस अध्यादेश का विरोध हो रहा है. आमतौर पर केंद्र की सरकारें संसद में किसी कानून को पास कराने से बचने के लिए अध्यादेश का सहारा लेती हैं. फिर तुरंत उसे कानून के तौर पर अस्थायी तौर पर लागू कर देती हैं. अध्यादेश का प्रावधान हमारे संविधान में है जरूर लेकिन विपक्षी दल आमतौर पर इसे अलोकतांत्रिक कदम के तौर पर देखती हैं.

अध्यादेश और विधेयक में एक खास अंतर होता है. हालांकि दोनों का ही मकसद कानून के तौर पर लागू होना है. विधेयक के कानून में बदलने की एक पूरी प्रक्रिया होती है जबकि अध्यादेश तुरत-फुरत केंद्र सरकार से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और उनके दस्तखत होते ही लागू हो जाता है. अक्सर केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजे जाने वाले अध्यादेशों को राष्ट्रपति से कुछ ही घंटों या एक दो दिनों में मंजूरी भी मिल जाती है. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में बहुत कम ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति ने किसी अध्यादेश को रोककर वापस लौटा दिया हो.

सवाल – क्या है केंद्र सरकार का ये नया अध्यादेश?
– दिल्ली की केजरीवाल सरकार के खिलाफ केंद्र सरकार जो अध्यादेश लेकर आई है और उसे लागू किया है, वो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 है, इसके तहत दिल्ली में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित किया जाएगा. प्राधिकरण को सभी ‘ग्रुप ए और दानिक्‍स के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का हक़ तो होगा लेकिन आख़िरी मुहर उपराज्यपाल की होगी.यानी अगर उपराज्यपाल को प्राधिकरण का लिया फैसला ठीक नहीं लगा तो वो उसे बदलाव के लिए वापस लौटा सकते हैं. फिर भी अगर मतभेद जारी रहता है तो अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होगा.

सवाल – संविधान का कौन सा प्रावधान केंद्र को अध्यादेश लाने का अधिकार देता है?
– संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत कार्यपालिका को विशेष मामलों में अध्यादेश लाने का अधिकार है, खासकर तब जब संसद का कोई सत्र नहीं चल रहा हो. जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो तो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य माना जाएगाहालांकि कई जानकारों का कहना है कि इस अध्यादेश को केंद्र सरकार जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद लेकर आई, वो फ़ैसला नैतिकता और लोकतंत्र के मापदंड पर सही नहीं उतरता.

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