साथ ही टिप्पणी की कि बहुत से हाई कोर्टों में चलन है कि एक प्राथमिकी से जुड़ी याचिकाओं को एक ही न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ एक आरोपित की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें ओडिशा हाई कोर्ट के जनवरी माह के आदेश को चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट ने नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस मामले में एक ही प्राथमिकी के विभिन्न आरोपितों की याचिकाओं पर हाई कोर्ट के कम से कम तीन भिन्न न्यायाधीशों की ओर से पारित आदेशों को देखा है। शीर्ष अदलत ने 15 मई के अपने आदेश में कहा, ‘इस प्रकार का चलन विषम स्थितियां पैदा करेगा। कुछ आरोपितों को जमानत दे दी गई, जबकि उसी अपराध में समान भूमिका वाले कुछ आरोपितों को जमानत नहीं दी गई।’
शीर्ष अदालत ने 31 जनवरी, 2023 के आदेश को खरिज कर दिया और मामले को वापस हाई कोर्ट भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हाई कोर्ट से अनुरोध किया जाता है कि वह अन्य समन्वित पीठों के आदेशों के प्रभाव पर गौर करें और नए सिरे से आदेश पारित करें।