कर्नाटक विधानसभा चुनावों में इस बार रिकॉर्ड 72 फीसदी वोटिंग हुई, जो हर बार से ज्यादा रही. 42.5 लाख नए वोटर्स ने पहली बार वोट किया. पूरी दुनिया में जब भी कहीं ज्यादा वोटिंग होती है तो चुनाव विश्लेषक इसका अलग मतलब लगाते हैं. चुनावों में ज्यादा और कम वोटिंग को वो एक खास तरीके से देखते हैं. अगर बढ़ी या कम हुई वोटिंग को चुनाव लड़ रही पार्टियों के सिलेसिले में देखें तो इसके मतलब अलग होते हैं. मोटे तौर पर मानते हैं कि ज्यादा वोटिंग का मतलब एंटी एनकंबैसी फैक्टर हावी है यानि सत्ता में मौजूदा पार्टी से नाराजगी वाले वोट ज्यादा पड़े हैं.
हालांकि हर चुनाव में वोटिंग से पहले चुनाव आय़ोग से लेकर ज्यादातर नेता ये जतन करते हैं कि वोट बड़े पैमाने पर घर से निकलें और ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालें. ये लोकतंत्र के लिए तो अच्छा है लेकिन ज्यादा वोटिंग सियासी दलों को अलर्ट मोड पर भी ले आती है. वो इसका मतलब अपने अपने तरीके से लगाने लगते हैं.
आमतौर पर विश्लेषक मानते हैं कि कम वोटिंग ये कहती है कि मतदाता उदासीन है और जो चल रहा है वो चलते रहने देना चाहता है जबकि ज्यादा वोटिंग का मतलब वह बदलाव चाहता है. हालांकि ये इसे समझने का बहुत सरलीकरण वाला तरीका है. कई बार मिक्स रुझान भी होता है.वैसे इस साल हिमाचल प्रदेश में चुनावों में वोट परसेंट बढ़ा था और उसका नतीजा वहां बदलाव के तौर पर देखने को मिला.
जब भारत में पहली बार 1952 में आमचुनाव हुए थे तब वोटों का परसेंट केवल 46 फीसदी था. 2019 में लोकसभा चुनावों में 67 फीसदी वोट पड़े. 1989 से लेकर 2019 तक आमचुनावों में वोटों का औसत काउंट 52.8 फीसदी था. माना जाता है कि विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों के मुकाबले ज्यादा वोट डलते हैं.
सवाल – राजनीति विज्ञानी बढ़े या घटे वोटों को किस तरह देखते हैं?
– राजनीति विज्ञानी कहते हैं कि घटे या बढ़े मतदान प्रतिशत का सत्ता विरोधी या सत्ता के पक्ष में कोई कनेक्शन समझ में नहीं आता. हां, अगर छह-सात फीसदी का अंतर हो तब जरूर इसका मतलब निकाल सकते हैं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के मुताबिक आमतौर पर जब मत प्रतिशत घटता और बढ़ता है तो लोग उसके निहितार्थ निकालते हैं, लेकिन इसे लेकर किसी प्रकार की सहमति नहीं बन पाई है. जब भी औसत आंकड़ों में 7 या इससे अधिक प्रतिशत का हेरफेर होता है तो नतीजे चौंकाने वाले आते हैं.
सवाल – कर्नाटक में इस बार 72 फीसदी वोटिंग हुई है, इसे किस तरह देखा जाए?
– भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक विधानसभा चुनावों में इस बार वोट परसेंटेज 72.81 का था. ये 1957 के बाद सबसे ज्यादा है. हालांकि वर्ष 2018 में कर्नाटक में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब कुल 72.13 फीसदी वोट पड़े थे. इस हिसाब से देखें तो कर्नाटक के वोटों में कोई बड़ा बदलाव नहीं है. इस लिहाजा केवल कोई अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि बढ़े वोट किधर गए हैं.