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फुल पेमेंट एग्रीमेंट करना सही है या नहीं? प्लॉट, जमीन या घर खरीदने से पहले जान लें

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भारतीय रजिस्‍ट्रेशन एक्‍ट में यह प्रावधान है कि 100 रुपये मूल्‍य से ज्‍यादा की किसी भी तरह की संपत्ति का अगर किसी भी प्रकार से हस्‍तांतरण होता है, तो यह लिखित में होगा. इसका रजिस्ट्रेशन सब-रजिस्‍ट्रार कार्यालय में करवाया जाता है. संपत्ति के रजिस्‍ट्रेशन को रजिस्ट्री कहा जाता है. मकान, दुकान, प्‍लॉट या कृषि भूमि की रजिस्‍ट्री कराने के लिए सरकार को शुल्‍क देना पड़ता है. लेकिन, बहुत से लोग अब भी प्रॉपर्टी बेचने वाले से फुल पेमेंट एग्रीमेंट (Full payment Agreement of Property) करके संपत्ति खरीद रहे हैं. ऐसा करने के पीछे दो कारण हैं. कुछ जगह सरकार रजिस्‍ट्री बंद कर देती है, वहां संपत्ति का हस्‍तांतरण फूल पेमेंट एग्रीमेंट पर किया जाता है. दूसरा बहुत से लोग रजिस्‍ट्री शुल्‍क बचाने के लिए भी इसका सहारा लेते हैं.

अब सवाल यह उठता है कि क्‍या रजिस्‍ट्री न करवाकर फुल पेमेंट एग्रीमेंट पर ही प्रॉपर्टी खरीदना क्‍या फायदे का सौदा है? पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के वकील सुधीर सहारण का कहना है कि फुल पेमेंट एग्रीमेंट करके प्रॉपर्टी खरीदने को हम खरा सौदा तो बिल्‍कुल भी नहीं कह सकते हैं. अपनी गाढ़ी कमाई को प्रॉपर्टी में लगाना है तो आपको हमेशा ऐसी संपत्ति ही खरीदनी चाहिए जिसकी रजिस्‍ट्री हो सके. और स्‍टॉम्‍प ड्यूटी बचाने के चक्‍कर में फुल पेमेंट एग्रीमेंट या वसीयत जैसे तरीकों को अपनाने से हमेशा बचना ही चाहिए.

फुल पेमेंट एग्रीमेंट मतलब बस मन को दिलासा
फुल पेमेंट एग्रीमेंट सिर्फ दो लोगों के बीच भरोसे और संबंधों पर निर्भर है. फुल पेमेंट एग्रीमेंट पर संपत्ति खरीदना तो सिर्फ अपने आपको दिलासा देना है. पावर ऑफ अटॉर्नी या फुल पेमेंट एग्रीमेंट से आपको किसी भी प्रॉपर्टी का कानूनन मालिकाना हक नहीं मिल जाता. आए दिन ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमें सिर्फ फुल पेमेंट एग्रीमेंट बनवाकर किसी ने प्रॉपर्टी पर कब्‍जा ले लिया. कुछ समय बाद प्रॉपर्टी बेचने वाले व्यक्ति ने ही उस संपत्ति पर दावा ठोक दिया.

इतना ही नहीं, कई बार तो प्रॉपर्टी बेचने वाले की मृत्यु के बाद उसके बच्चे या करीबी रिश्तेदार ही ऐसी प्रॉपर्टी पर अपना दावा जता देते हैं. ऐसी परिस्थितियों में फुल पेमेंट एग्रीमेंट कराने वाला पैसे लगाकर मुसीबत में फंस जाता है. फुल पेमेंट एग्रीमेंट मालिकाना हक का दस्‍तावेज नहीं है. इससे न ही संपत्ति की म्‍यूटेशन यानी दाखिल खारिज भी नहीं होता. ऐसे मामले कोर्ट में हमेशा कमजोर होते हैं और बिना रजिस्ट्री आप प्रॉपर्टी पर अपना मालिकाना हक नहीं पेश कर पाते. संपत्ति आपके हाथ से जाने का जोखिम ज्‍यादा होता है.

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